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________________ आगम निबंधमाला निबंध- 19 - दीक्षार्थी एवं दीक्षा गुरु की योग्यता (निशीथ सूत्र उद्दे.११, सूत्र-८३, 84) प्रथम सूत्र में जानते हुए भी अयोग्य को दीक्षा देने का प्रायश्चित्त कहा है और द्वितीय सूत्र में अनजान में दीक्षा दिये बाद अयोग्य मालूम होने पर भी बड़ी दीक्षा देने का प्रायश्चित्त कहा है। इससे यह ध्वनित होता है कि दीक्षा देने के बाद अयोग्यता की जानकारी होने पर बड़ी दीक्षा नहीं देनी चाहिए। अयोग्यता की जानकारी न होने के दो कारण हो सकते हैं। यथा- 1. दीक्षार्थी द्वारा अपनी अयोग्यता को छिपा लेना। 2. दीक्षा दाता के द्वारा छानबीन करके पूर्ण जानकारी न करना। दूसरे कारण में दीक्षादाता का प्रमाद है / अतः वह सूत्रोक्त प्रयाश्चित्त को प्राप्त करता है। उपस्थापित करने के बाद उसे छोड़ना या न छोड़ना यह गीतार्थ के निर्णय पर निर्भर है। व्याख्याओं के अनुसार प्रव्रज्या के अयोग्य व्यक्ति निम्नलिखित है- (1) बाल- आठ वर्ष से कम उम्र वाला, (2) वृद्ध-सत्तर (70) वर्ष से अधिक उम्र वाला (3) नपुंसक- जन्म नपुंसक, कृतनपुंसक, स्त्रीनपुंसक तथा पुरुषनपुंसक आदि। (4) जड़- शरीर से अशक्त, बुद्धिहीन व मूक (5) क्लीब- स्त्री के शब्द, रूप, निमन्त्रण आदि के निमित्त से उदित मोह-वेद को निष्फल करने में असमर्थ (6) रोगी- 16 प्रकार के रोग और आठ प्रकार की व्याधि में से किसी से युक्त / शीघ्रघाती व्याधि कहलाती है और चिर घाती रोग कहलाते है- भाष्य गाथा 3647 / (7) चोर- रात्रि में घर-घर प्रवेश कर चोरी करने वाला, जेब काटने वाला इत्यादि अनेक प्रकार के चोर डाकू लुटेरे (8) राज्य का अपराधी- किसी प्रकार का राज्य विरुद्ध कार्य करने पर अपराधी घोषित किया हुआ (9) उन्मत्त यक्षाविष्ट या पागल (10) चक्षुहीन- जन्मान्ध हो या बाद में किसी एक या दोनों आँखो की ज्योति चली गई हो (11) दास- किसी का खरीदा हुआ या अन्य किसी कारण से दासत्व को प्राप्त (12) दुष्ट- कषाय दुष्ट(अति क्रोधी), विषयदुष्ट(विषयासक्त) (13) मूर्ख- द्रव्यमूढ़ आदि 107
SR No.004412
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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