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________________ आगम निबंधमाला है उनकी पालना करे एवं अन्य की नहीं करे तो उन्हें शिथिलाचारी नहीं समझा जा सकता / जो साधक आगमोक्त स्पष्ट निर्देशों व परम्पराओं दोनों का यथावत् पालन करते है उनके तो शुद्धाचारी व विशिष्टाचारी कहलाने में कोई बाधा को स्थान ही नहीं है किन्तु यदि 5-10 भी या एक भी आगमोक्त निर्देश का परम्परा के आग्रह से उन श्रमणों के अपालन होता हो तो वे भी शुद्धाचारी के दर्जे से नीचे ही कहलायेंगे, चाहे कितनी ही विशिष्ट समाचारियों की पालना करे / शुद्धाचार या शिथिलाचार का स्वरूप समझे बिना मनमाने निर्णय करने या कहने से या तो निरर्थक रागद्वेष बढ़ाना होता है या शिथिलाचार का पोषण होता है एवं निशीथ उद्दे. 16 से प्रायश्चित्त आता है। इस विवेचन से सही अर्थ समझ कर शिथिलाचार के असत्य आक्षेप लगाने से बचा जा सकता है और पक्षान्धता से शुद्धाचारी मानने से भी बचा जा सकता है तथा अपनी आत्मा का सही निर्णय भी लिया जा सकता है / साथ ही शुद्ध समझ पूर्वक शक्ति अनुसार शुद्ध आराधना की जा सकती है / पुनश्च सार भूत चार वाक्य :1. प्रवत्ति रूप (रिवाज रूप) आगम विपरीत आचरण करना शिथिलाचार है। 2. परिस्थिति व अपवाद मार्गरूप आगम विपरीत आचरण शिथिलाचार नहीं है। 3. पूर्वधरों के सिवाय अन्य आचार्यादि के द्वारा बनाये, आगम से अतिरिक्त नियमों के विपरीत आचरण करना शिथिलाचार नहीं है / 4. जिस गच्छ में या संघ में रहना हो उस गच्छ या संघ के नायक की संयम पोषक आज्ञा व उस गच्छ की किसी भी समाचारी का पालन नहीं करना तो शिथिलाचार ही क्या स्वच्छन्दाचार भी है / . - - 106
SR No.004412
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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