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________________ आगम निबंधमाला 42. रेफ्रीजरेटर की वस्तु बाहर निकाली पड़ी हो उसे भी अत्यंत ठण्डी होने से नहीं लेना / फ्रीज का बाहर से भी संघटा मानना / आइस्क्रीम को सचित्त मानना / (व्यक्तिगत) 43. बहिनों को प्रार्थना में साधु या भाइयों के साथ नहीं बोलना / (व्यक्तिगत) 44. बेले के आगे की तपस्या में राख का भी धोवण पीना नहीं कल्पता है / (व्यक्तिगत) 45. घर में अकेली स्त्री हो तो वहाँ अकेला साधु गोचरी नहीं जाना। (तेरा.) इन नियमों का आगमिक कोई स्पष्ट पाठ उपलब्ध नहीं है / कई व्यक्तिगत विचारों से और कई अर्थ परम्परा से या नये अर्थ की उपज से समय-समय पर बनाई गई समाचारी रूप है / इनमें कुछ सामान्य सावधानी रूप है, कुछ अतिसावधानी रूप है। . इन नियमों के बनने बनाने में मुख्य लक्ष्य, प्रायः संयम सुरक्षा का व आगमोक्त नियमों के पालन में सहयोग सफलता मिलते रहने का है। अत: कई नियम उपादेय तो है ही फिर भी आगम से पूर्ण स्पष्ट प्रमाणित नहीं होने से इनके पालन या अपालन को शुद्धाचार व शिथिलाचार की भेद रेखा में नहीं जोड़ा जा सकता है एवं आगम के समकक्ष बल नहीं दिया जा सकता। जो इनका पालन करे तो वह उनका परम्परा-पालन, सावधान दशा व विशेष त्याग नियम रूप कहा जा सकता है / इसमें कोई निषेध नहीं है / किन्तु इन नियमों का पालन करने वाला ही शुद्धाचारी है और पालन नहीं करने वाला शिथिलाचारी है, ऐसा समझना या कहना बुद्धिमानी या विवेकयुक्त नहीं है / __कई साधक इन अतिरिक्त नियमों का पालन तो करते हैं और मौलिक आगमोक्त नियमों की उपेक्षा या विडम्बना भी कर देते हैं, विपरीत प्ररूपणा भी कर देते हैं वे शुद्धाचारी नहीं कहला सकते / .. जो साधक मौलिक आगमोक्त स्पष्ट निर्देशों का यथावत पालन करे और इन अतिरिक्त नियमों में जो-जो नियम स्वगच्छ में निर्दिष्ट 105
SR No.004412
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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