________________ परोक्ष प्रमाण की प्रामाणिकता / 367 जैन के अनुसार-परोक्ष प्रमाण के पांच प्रकार हैं स्मृति, प्रत्यभिज्ञा, तर्क (ऊह), अनुमान एवं आगम। स्मृति धारणामूलक, प्रत्यभिज्ञा, स्मृति एवं अनुभवमूलक, तर्क प्रत्यभिज्ञामूलक तथा अनुमान तर्क निर्णीत साधनमूलक होते हैं। इसलिए ये परोक्ष हैं / आगम वचनमूलक होता है, इसलिए परोक्ष है। स्मृति, तर्क एवं प्रत्यभिज्ञा के प्रामाण्य के संबंध में दार्शनिकों में परस्पर मतैक्य नहीं है। किंतु अनुमान को चार्वाक् इतर सभी दार्शनिकों ने प्रमाण स्वीकार किया है। अनुमान प्रत्यक्ष भिन्न परोक्ष प्रमाण है / यद्यपि सभी जैन तार्किकों ने परोक्ष के पाँच भेद किए हैं किंतु अकलंकदेवकृत न्यायविनिश्चय के टीकाकार वादिराज ने परोक्ष के अनुमान एवं आगम ये दो ही भेद किए हैं तथा अनुमान को गौण एवं मुख्य भेद से द्विरूप स्वीकार किया है। गौण अनुमान के तीन भेद किए हैं—स्मृति, प्रत्यभिज्ञा एवं तर्क। ___ स्मृति आदि अपने-अपने उत्तरवर्ती के लिए हेतु हैं। स्मृति आदि परम्पा से अनुमान के कारण है अतः वादिराज ने इनको अनुमान में ही परिगणित किया है। अकलंकदेव ने प्रत्यक्ष अनुमान और आगम इन तीन प्रमाणों का उल्लेख किया है। अतः वादिराज ने परोक्ष के अनुमान और आगम भेद करके स्मृति आदि का अन्तर्भाव अनुमान में कर लिया है / वादिराज ने स्मृति आदि का अनुमान में अन्तर्भाव करने का एक यह भी कारण हो सकता है कि अनुमान के प्रामाण्य को सभी दार्शनिकों ने स्वीकार किया है तथा अनुमान की प्रक्रिया में स्मृति, प्रत्यभिज्ञा, तर्क का प्रयोग स्वीकार किया है अतः स्मृति आदि का अनुमान में अन्तर्भाव करने से जैनेतर दार्शनिकों से अनुमान चर्चा के सन्दर्भ में नैकट्य हो जाता है तथा अनेकान्त विचार-सरणी में इस प्रकार की प्रस्तुति युक्तिविहीन नहीं है। ___ उपर्युक्त चर्चा से स्पष्ट हो जाता है कि परोक्ष प्रमाण के अन्तर्गत अनुमान का अतिरिक्त वैशिष्ट्य है एवं उसका क्षेत्र भी व्यापक है / अनुमान न्यायशास्त्र का सबसे महत्त्वपूर्ण अंग है। वात्स्यायनभाष्य में आन्वीक्षिकी का अर्थ न्यायविद्या किया है तथा प्रत्यक्ष और आगम के अनुकूल अनुमान को ही अन्वीक्षा कहते हैं / अतः प्रत्यक्ष और आगम दृष्ट वस्तु तत्त्व के युक्तायुक्त विचार का नाम अन्वीक्षा है और जिसमें वह होती है, उसे आन्वीक्षिकी कहते है अर्थात् न्यायविद्या / न्यायशास्त्र का आधारभूत तत्त्व अनुमान . ही है।