________________ 361 मनोविज्ञान के सन्दर्भ में दस संज्ञाएं 'अणेग चित्ते खलु अयं पुरिसे' यह पुरुष अनेक चित्तवाला है। अनेक विचारधाराओं से युक्त है। व्यक्ति के भीतर नाना प्रकार के भावों की तरंगें उठती रहती हैं / प्रतिक्षण उसका चित्त, मन तरंगायित रहता है। कभी वह विचार के स्तर पर आनन्द के उदयाद्रि पर होता है तो कभी हीनता की गहन गम्भीर तलहटियों में विचरण करता है। व्यक्ति अपने व्यक्तित्व का स्रष्टा स्वयं होता है। जैसे विचार होते हैं, वैसा ही उसका व्यवहार हो जाता है। ___व्यवहार विचारों का ही अनुगमन करता है / सन्तुलित व्यवहार के लिए विचारों का सन्तुलन अत्यन्त अपेक्षित रहता है / चित्त की निर्मलता एवं मलिनता व्यक्ति के व्यवहार की नियामक रेखा है / एक ध्यान साधक का लक्ष्य होता है, चित्त की विशुद्धता, उज्ज्वलता एवं पवित्रता / व्यक्तित्व विकास के लिए आवश्यक होता है विधायक भावों की वरीयता एवं निषेधात्मक भावों का अल्पीकरण। __ व्यक्ति की चेतना अनेक स्तरों पर अपना कार्य करती है / जब प्राण का प्रवाह, चेतना का प्रवाह ऊर्ध्वमुखी होता है व्यक्ति स्वतः ही विधायक भावों से आप्लावित हो जाता है / अधोमुखी प्राण चेतन-प्रवाह व्यक्तित्व में किन्तु परन्तु पैदा करता रहता है / उद्दण्डता, क्रूरता, उच्छंखलता आदि दुर्गुण स्वतः ही वहां पर प्रकट होने लगते शरीर का रासायनिक परिवर्तन, अन्तस्रावी-ग्रन्थियों के स्राव की अल्पता, अधिकता भी व्यक्ति के व्यवहार की नियामक है ऐसा आज के विज्ञान का मन्तव्य है.। न्यूरो-इन्डोक्राइन तन्त्र की संयुक्त प्रणाली का फंक्शन व्यक्तित्व के घटक तत्त्वों में मुख्य तत्त्व है। उनकी पहुंच यहां तक ही है। मानसशास्त्री मन के विभिन्न स्तरों के आधार पर व्यक्तित्व की व्याख्या का प्रयत्न करते हैं। Conscious mind, sub conscious mind and unconscious mind of संयुक्त क्रियाशीलता व्यक्तित्व-व्याख्या का महत्त्वपूर्ण बिन्द बनती है। मनोवैज्ञानिक इनके आधार पर मन की मूलभूत समस्याओं को समाहित करने का प्रयत्न करते हैं। मूल प्रवृत्तियों के संवेग उद्दीपन आदि के द्वारा व्यवहार में परिवर्तन परिलक्षित होता