________________ 360 / आर्हती-दृष्टि 16. सुश्रुतसंहिता, शरीरस्थानम्, 5/26, 6/31 / 17. बहुभिरात्मप्रदेशैरधिष्ठिता देहावयवाः मर्माणि।। ___ स्याद्वादमंजरी पृ. 77 / 18. प्रेक्षा सिद्धान्त और प्रयोग पृ., 98 / 19. (क) तीर्थकृच्छवाभ्रदेवानां सर्वांगोत्थोऽवधिर्भवेत् / नृतिरश्चां तु शंखाब्जस्वस्तिकाद्यङ्गचिह्नजम् // पंचसंग्रह (संस्कृत) 1/58 / (ख) नेरइयदेवतित्थंकरा य, ओहिस्सऽबाहिरा हुति। पासंति सव्वओ खलु, सेसा देसेण पासंति // नन्दी सू. 22 / 20. ‘ण च एक्कस्स जीवस्स एक्कम्हि पदेसे ओहिणाणकरणं होदित्ति णियमो अस्थि, एग दो तिण्णि-चत्तारि-पंच-छआदि खेताणमेगजीवम्हि संखादिसुहसंठाणाणं कम्हि वि संभवादो। एदाणि संठाणाणि तिरिक्ख-मणुस्साणं णाहीए उपरिमभागो होति, णो हेट्ठा सुहसंठाणमधोभागेण सह विरोहादो। तिरिक्खमणुस्सविहंगणाणीणं णाहीए हेट्ठा सरडादि असुहसंठाणाणि होति त्ति गुरुपदेसो ण सुत्तमत्थि। धवला 13/5, 5, 58/296/10 . 21. कर्मग्रन्थ, भाग 1 पृ., 111. .. 22. सव्वंग अंगसंभवविण्हादुप्पज्जदे जहा ओही। मणपज्जवं च दव्यमणादो उपज्जदे णियमा // गोम्मटसार जीवकाण्ड गा. 441 / 23. भुवनज्ञानं सूर्ये संयमात्। पातञ्जल योग सूत्र. 3/26 / 24. नाभिचक्रे कायव्यूहज्ञानम्। . वही. 3/29' 25. जैन परामनोविज्ञान, पृ. 41. 26. अपना दर्पणः अपना बिम्ब, पृ. 129. मणपज्जन