________________ 340 / आर्हती-दृष्टि . आवश्यक नियुक्ति में कहा गया है कि कालिक-सूत्र वे कहलाते हैं जहां उनकी नय से व्याख्या नहीं की जाती है। आर्यवज्र के समय तक सारे सूत्रों का चाहे वे अंगप्रविष्ट थे या अंगबाह्य, उनकी व्याख्या चार अनुयोगों के साथ नयों के द्वारा की जाती थी। किन्तु उसके पश्चात् आर्यरक्षित ने चार अनुयोगों को पृथक् कर दिया। क्योंकि दुर्बलिका पुष्यमित्र जैसे धुरन्धर प्रतिभाशाली शिष्य भी जब चार अनुयोग-सहित सूत्रों का स्मरण करने में कठिनाई का अनुभव करने लगे तब शिष्यों की कमजोर बुद्धि के कारण इन चार अनुयोगों को पृथक् कर दिया गया। . .. विशेषावश्यक भाष्य में गमिक एवं अगमिक की भेद-रेखा करते समय कहा कि जिनके पाठ सदृश हैं, वे गमिक-सूत्र हैं, जैसे-दृष्टिवाद तथा जिनके पाठ असदृश हैं, गाथा, श्लोक आदि रूप में हैं वे अगमिक सूत्र है तथा वे ही कालिक सूत्र हैं।' विशेषावश्यक में ही अन्यत्र प्रथम अनुयोग (चरण करणानुयोग) से सम्बन्धित को 'कालिक-सूत्र कहा गया है / हरिभद्र तथा मल्लधारी हेमचन्द्र ने 11 अंगों को कालिक कहा है क्योंकि इनका अध्ययन मर्यादित समय में ही किया जाता है। ___नन्दी-सूत्र में प्रदत्त श्रुतज्ञान के भेद-प्रभेदों को तथा उनके कालिक-उत्कालिक भेदों को निम्न तालिका से समझ सकते हैं श्रुतज्ञान अंग-प्रविष्ट , अंग बाह्य द्वादशांग आवश्यकव्यतिरिक्त आवश्यक गमिक अगमिक छह विभागवाला दृष्टिवाद ११अंग कालिक * उत्कालिक उत्कालिक कालिक नन्दी-सूत्र में अंग-विष्ट के 12 भेद किए हैं / तालिका में प्रदत्त अन्य भेद उसके फलितार्थ के रूप में उपलब्ध होते हैं। नन्दी में श्रुतज्ञान के गमिक एवं अगमिक दो भेद किए गए हैं। वहां अगमिक सूत्र को कालिक कहा है / अगमिक एवं कालिक ये