________________ 314 5. स्वयंबुद्ध सिद्ध-जो स्वयंबुद्ध होकर मुक्त होता है। स्वयंबुद्ध के दो अर्थ किए गए हैं(क) जिसे जातिस्मरण के कारण बोधि प्राप्त हुई है। (ख) जिसे बाह्य निमित्त के बिना बोधि प्राप्त हुई है। मलयगिरि ने भी इस प्रसंग में जातिस्मरण का उल्लेख किया है। . 6. प्रत्येकबुद्ध सिद्ध-जो प्रत्येक बुद्ध होकर मुक्त होता है। प्रत्येक बुद्ध का अर्थ है किसी एक बाह्य निमित्त से प्रतिबुद्ध होने वाला। 7. बुद्धबोधित सिद्ध-जो बुद्धबोधित होकर मुक्त होता है। चर्णिकार ने बुद्धबोधित के चार अर्थ किए हैं१. स्वयंबुद्ध तीर्थंकर आदि के द्वारा बोधि प्राप्त / 2. कपिल आदि प्रत्येक बुद्ध के द्वारा बोधि प्राप्त। . 3. बुद्धबोधित के द्वारा बोधि प्राप्त। : 4. आचार्य के द्वारा प्रतिबुद्ध से बोधि प्राप्त। हरिभद्र और मलयगिरि ने बुद्धबोधित का अर्थ आचार्य के द्वारा बोधि प्राप्त किया है। . 8. स्त्रीलिंग सिद्ध-जो स्त्री की शरीर रचना में मुक्त होता है। लिंग के तीन अर्थ हैं—वेद (कामविकार) 2. शरीर रचना 3. नेपथ्य (वेशभूषा) / यहां लिंग का अर्थ शरीर रचना है। स्त्री, पुरुष और नपुंसक संबंधी भेद के दो हेतु हैं-१. शरीर नाम कर्म का उदय. 2. वेद का उदय। 9. पुरुषलिंग सिद्ध-जो पुरुष की शरीर रचना में मुक्त होता है। 10. नपुंसकलिंग सिद्ध–जो कृत्रिम नपुंसक के रूप में मुक्त होता है। चूर्णि और वृत्तिद्वय में नपुंसक की व्याख्या उपलब्ध नहीं है / भगवती के अनुसार नपुंसक चारित्र का अधिकारी होता है, कृत नपुंसक ही चारित्र का अधिकारी होता है। अभयदेवसूरि ने नपुंसक का अर्थ कृत नपुंसक किया है। 11. स्वलिंगसिद्ध-जो मुनि के वेश में मुक्त होता है। 12. अन्यलिंग सिद्ध-जो अन्यतीर्थी के वेश में मुक्त होता है। 13. गृहलिंग सिद्ध-जो गृहस्थ के वेश में मुक्त होता है। 14. एकसिद्ध-जो एक समय में एक जीव सिद्ध होता है। 15. अनेकसिद्ध-जो एक समय में अनेक जीव सिद्ध होते हैं। उनमें एका समय में जघन्यत: दो और उत्कृष्टत: एक सौ आठ सिद्ध हो सकते हैं / उत्तराध्ययन में उनकी