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________________ 304 / आहती-दृष्टि अवधि और मनःपर्यवज्ञान का अन्तर निम्न चार्ट से समझा जा सकता हैअवधिज्ञान मनःपर्यवज्ञान - स्वामी-अविरत सम्यग्दृष्टि, | ऋद्धि सम्पन्न अप्रमत्त संयत / देशविरत, सर्वविरत। विषय-द्रव्य–अशेष रूपी द्रव्य। द्रव्य-संज्ञी जीवों का मनोद्रव्य।.. क्षेत्र-पूरा लोक और अलोक में प्रमाण | क्षेत्र—मनुष्य-क्षेत्र। ... असंख्येय खण्ड। काल-असंख्येय अवसर्पिणी- | काल-पल्योपम के असंख्येय भाग उत्सर्पिणी प्रमाण अतीत- अनागत | प्रमाण अतीत अनागत काल। / काल। भाव-प्रत्येक रूपी-द्रव्य के असंख्येय | भाव-मनोद्रव्य के अनन्त पर्याय। | पर्याय। .. जिस प्रकार एक फिजिशियन आंख, नाक, गला आदि के सभी अवयवों की जाँच करता है, उसी प्रकार आंख, गला आदि का विशेषज्ञ डॉ. भी करता है। किन्तु दोनों की जाँच और चिकित्सा में अन्तर रहता है। एक ही कार्य होने पर भी विशेषज्ञ के ज्ञान की तुलना में वह डॉ. नहीं आ सकता। इसी प्रकार मनःपर्यवज्ञान की तुलना में साधारण अवधिज्ञान नहीं आ सकता। मन:पर्यवज्ञान और अवधिज्ञान में साधर्म्य अवधिज्ञान के समान मनःपर्यवज्ञान भी अतीन्द्रिय प्रत्यक्ष है। दोनों ही विकल्प प्रत्यक्ष हैं। ये दोनों ही ज्ञानरूपी पदार्थ को इन्द्रिय और मन की सहायता के बिना साक्षात् करने की क्षमता रखते हैं। अरूपी पदार्थों-धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाश, काल और कर्ममुक्त जीव को साक्षात् करने में दोनों ही समर्थ नहीं हैं। जिनभद्रगणि ने अवधिज्ञान एवं मनःपर्यवज्ञान में साधर्म्य के सूचक चार हेतुओं का निर्देश किया है 1. दोनों ज्ञान छद्मस्थ के होते हैं। 2. दोनों ज्ञान का विषयरूपी द्रव्य है। 3. दोनों ज्ञान क्षायोपशमिक भाव है। 4. दोनों प्रत्यक्ष ज्ञान है।
SR No.004411
Book TitleAarhati Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalpragyashreeji Samni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year1998
Total Pages384
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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