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________________ 294 / आर्हती-दृष्टि है। क्षेत्र की अपेक्षा से शरीर प्रदेश अनेक संस्थान संस्थित होते हैं। श्रीवत्स, कलश, शंख, स्वस्तिक, नन्द्यावर्त आदि आकार भी शरीर संस्थित होते हैं / चिह्नों का आकार नियत नहीं होता। जैसे शरीर और इन्द्रिय आदि का आकार नियत होता है किन्तु अवधिज्ञानावरणीय कर्म के क्षयोपशम को प्राप्त हए जीवप्रदेशों के करण-रूप शरीरप्रदेश अनेक संस्थानों से संस्थित होते हैं। एक जीव के एक ही स्थान में अवधिज्ञान का करण होता है, ऐसा कोई नियम नहीं है ।किसी भी जीव के एक, दो, तीन आदि क्षेत्र रूप, शंख आदि शुभ स्थान सम्भव हैं / ये शुभ संस्थान तिर्यञ्च एवं मनुष्य के नाभि से ऊपर के भाग में होते हैं तथा विभंग अज्ञानी तिर्यञ्च एवं मनुष्य के नाभि के नीचे अधोभाग में गिरगिट आदि आकारवाले अशुभ संस्थान होते हैं / धवला में स्पष्ट कहा है इस विषय में शास्त्र का वचन नहीं है मात्र गुरु उपदेश से यह तथ्य प्राप्त है। अवधिज्ञान का यह विवेचन साधना के क्षेत्र में बहुत महत्त्वपूर्ण है किन्तु दार्शनिक चर्चा में अवधि के इस रूप की चर्चा उपलब्ध नहीं होती। विशेषावश्यक भाष्य में आवश्यक नियुक्ति की गाथा को उद्धृत करते हुए अवधिज्ञान का क्षेत्र, संस्थान, आनुगामिकं, अवस्थित आदि चौदह दृष्टियों से तथा ऋद्धि को इसमें सम्मिलित करें तो पन्द्रह दृष्टियों से विस्तृत विवेचन हुआ है। भाष्य में नियुक्ति गाथा के नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल, भव एवं भाव इस सात निक्षेपों से वर्णित अवधिज्ञान का विस्तार से वर्णन प्राप्त है / यथा१. नाम अवधि __प्रकृत अवधिज्ञान का वर्णावली मात्र जो अभिधान है, वह नाम अवधि है / अवधि यह अभिधान अवधिज्ञान का वचन रूप स्वपर्याय है। 2. स्थापना अवधि ____ आकार-विशेष को स्थापना अवधि कहा गया है / अवधिज्ञान के विषयभूत द्रव्य भू, भूधर, भरत आदि क्षेत्र तथा अवधि के आधारभूत साधु आदि का जो आकार होता है, उनका आकार-विशेष ही स्थापना अवधि है। 3. द्रव्य अवधि ___कायोत्सर्ग आदि क्रिया में स्थित साधु के अवधिज्ञान उत्पन्न होता है तो वह साधु अथवा जिसको अपना विषय बनाता है, वे पर्वत, पृथ्वी आदि पदार्थ अथवा उस अवधिज्ञान की उत्पत्ति में जो सहकारी रूप से उपकारक द्रव्य हैं / वे सब द्रव्य अवधि हैं / तप, संयम आदि अवधिज्ञान की उत्पत्ति में जो कारणभूत हैं उनको भी द्रव्य अवधि जानना चाहिए।
SR No.004411
Book TitleAarhati Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalpragyashreeji Samni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year1998
Total Pages384
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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