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________________ 290 / आर्हती-दृष्टि . उल्लेख मिलता है / तत्त्वार्थ भाष्य में प्रतिपाति और अप्रतिपाति के स्थान पर अवस्थित और अनवस्थित का प्रयोग किया गया है / प्रज्ञापना में प्रतिपाति, अप्रतिपाति, अवस्थित और अनवस्थित इन चारों का उल्लेख है। ..ऐसा प्रतीत होता है कि अवधिज्ञान के विभिन्न वर्गीकरण सापेक्ष दृष्टि से किए गए हैं / तत्त्वार्थवार्तिक में प्रकारान्तर से अवधिज्ञान के तीन भेद किए गए हैं 1. देशावधि, 2. परमावधि, 3. सर्वावधि। .. - १.वर्धमान, 2. हीयमान, 3. अवस्थित,४.अनवस्थित, 5. अनुगामी, 6: अननुगामी, 7. प्रतिपाति, 8. अप्रतिपाति–इनका देशावधि में समवतार किया गया है। हीयमान और प्रतिपाति इन दो को छोड़कर शेष छह का परमावधि में समवतार किया गया है। अनवस्थित, अवस्थित, अनुगामी, अननुगामी प्रतिपाति और अप्रतिपाति—इनका सर्वावधि में समवतार किया गया है / अकलंक ने देशावधि और परमावधि में तीन-तीन भेद किए हैंदेशावधि 1. जघन्य उत्सेधांगुल के असंख्येय भाग मात्र क्षेत्र को जानने वाला। 2. उत्कृष्ट सम्पूर्णलोक को जानने वाला। . 3. अजघन्योत्कृष्ट (मध्यम)-जघन्य और उत्कृष्ट का मध्यवर्ती। इसके असंख्येय विकल्प होते हैं। परमावधि 1. जघन्य—एक प्रदेश अधिक लोक प्रमाण विषय को जाननेवाला। 2. उत्कृष्ट असंख्यात लोकों को जाननेवाला। 3. अजघन्योत्कृष्ट (मध्यम)—जघन्य और उत्कृष्ट के मध्यवर्ती क्षेत्र को जानने वाला। सर्वावधि ___ उत्कृष्ट परमावधि के क्षेत्र से बाहर असंख्यात लोक क्षेत्रों को जानने वाला। इसके जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट कोई विकल्प नहीं होते। अकलंक के अनुसार परमावधि द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की दृष्टि से सर्वावधि से न्यून है, इसलिए परमावधि भी वास्तव में देशावधि ही है। फलितार्थ यह है कि अवधिज्ञान के मुख्य दो ही भेद हैं—सर्वावधि और देशावधि /
SR No.004411
Book TitleAarhati Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalpragyashreeji Samni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year1998
Total Pages384
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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