________________ 232 / आर्हती-दृष्टि 7. समवायांग, सू. 2 8. अनुयोग द्वार, सू. 50 9. नन्दी, सू. 73-80 10. भगवती की जोड़। 11. सुत्तं गणहरकहिदं तहेव पत्तेयबुद्धकहिदं च। ___ सुदकेवलिणाकहिदं अभिण्णदसपूव्वकहिदं च // . मूलाचार, 5.80, 12. नन्दी, सू. 73 13. तत्त्वार्थ भा. 1/20 14. तत्त्वार्थ भा. 1/20 15. नन्दी, सू. 74, ठाणं 2/105 16. नन्दी, सू. 75 17. अवश्यं कर्तव्यमावश्यकम्, सामायिकादि रूपम्। वि. भा. टी, पृ. 1 / 18. अवस्सयं अवस्सकरणिज्जं धुव मिग्गहो विसोही य। अज्झयणछक्क वग्गो नाओ आरहणा मग्गो // अनुयोगद्वार 24, - 19. समणेण सावएण य, अवस्सकायव्वयं हवइ जम्हा। अन्तो अहोनिसस्स उ तम्हा आवस्सयं नाम // अनुयोग द्वा. 28, 20. सपडिक्कमणो धम्मो, पुरिमस्स य पच्छिमस्स य जिणस्स। मज्झिमयाण जिणाणं कारणजाए पडिक्कमणं॥ आ नि. 1244, 21. स्वस्थानादपरस्थानं प्रमादस्य वशाद्गतः। तत्रैव क्रमणं भूय: प्रतिक्रमणमुच्यते // 22. प्रतिवर्तनं वा शुभेषु योगेषु मोक्षफलदेषु / . निःशल्यस्य यतेर्यत् तद्वा ज्ञेयं प्रतिक्रमणम् // आवश्यक सूत्र, पृ. 553, 23. जैन साहित्य का वृहत् इतिहास, प्रस्तावना, पृ. 50, 24. निज्जुत्ता ते अत्था जं बद्धा तेण होइ निज्जुत्ती। आव. नि. 88, . 25. सुत्ते निज्जुत्ताणं निज्जुत्तीए पुणो किमत्थाण? निज्जुत्ते वि न सव्वे कोइ अवक्खाणिए मुणइ // वि. भा. 1087-88, 26. वृत्तेः सूत्रविवरणस्य व्याख्यानं भाष्यं वार्तिकमुच्यते। _ विभा. वृ. गा. 1422, 27. सूत्राथों वर्ण्यन्तै यत्र पदैः सूत्रानुसारिभिः। स्वपदानि च वर्ण्यन्ते भाष्यं भाष्यविदो विदुः // भरतमुनि,