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________________ विशेषावश्यकभाष्य : एक परिचय | 231 उत्तरवर्ती आचार्यों में भी आचार्य जिनभद्र का बहुमानपूर्वक नामोल्लेख किया है। इनके लिए भाष्य सुधाम्भोधि, भाष्य पीयूषपाथोधि, दलितकुवादिप्रवाद आदि विशेषणों का प्रयोग करके उच्च कोटि के भाष्यकार के रूप में स्मरण किया है। विशेषावश्यक भाष्य के अतिरिक्त भी जिनभद्रगणी ने अन्य ग्रन्थों की रचना की है, जो निम्न है(१) विशेषावश्यकभाष्य स्वोपज्ञ वृत्ति (अपूर्ण), (2) वृहत्संग्रहिणी, (3) वृहत् क्षेत्र समास, (4) विशेषणवती, (5) जीतकल्प, (6) जीतकल्प भाष्य, (7) अनुयोगद्वार चूर्णि, तथा (8) ध्यान-शतक / इन ग्रन्थों में अनुयोगद्वार चूर्णि गद्यात्मक है तथा शेष रचनाएं पद्यात्मक हैं। विशेषावश्यकभाष्य वृत्ति संस्कृत में है तथा अवशिष्ट रचनाएं प्राकृत में निबद्ध हैं / ध्यान शतक के कर्ता क्षमाश्रमण जी को मानने में विद्वान् संशयास्पद हैं। साहित्यिक क्षेत्र में जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण का विशेष अनुदान भाष्य साहित्य है। उनके वर्तमान में विशेषावश्यकभाष्य एवं जीतकल्पभाष्य उपलब्ध है। जिनभद्रगणी क्षमाश्रमण आगम वाणी के मूर्त रूप थे। जिनभद्रगणी के काल का निश्चय कुछ तथ्यों के आधार पर किया जा सकता है। उनके ग्रन्थों में सिद्धसेन, पूज्यपाद आदि के मतों का उल्लेख है, पर वि. सं. 650 के बाद होनेवाले आचार्यों के मतों का उल्लेख अब तक प्राप्त नहीं हआ है। जिनदास की वि. सं. 733 में बनी नन्दी चर्णि में जिनभद्र के विशेषावश्यक का उल्लेख है। इन बिन्दुओं एवं अन्य उपलब्ध उल्लेखों के आधार पर आधुनिक शोध विद्वानों ने वि. सं. 545 से 650 तक उनका अनुमानित समय निर्धारण किया है। सन्दर्भ 1. णज्जंति अत्था जेण सो आगमो। आव. चू. , पृ. 36, ..2. अत्तस्स वा वयणं आगमो। अनु. चू. , पृ. 16, 3. अत्थं भासइ अरहा सुत्तं गंथंति गणहरा निउणं। सासणस्स हियट्ठाए तओ सुत्तं पवत्तइ // आव. नियुक्ति, गा. 92, 4. नन्दी, सूत्र 65 ___5. श्रुतमाप्तवचनमागमउपदेश ऐतिहमाम्नायः प्रवचनं जिनवचनमित्यनान्तरम्। तत्त्वा , भा. 1/20, __.. आगमो सिद्धन्तो पवयणमिदि एयट्ठो। धवला 1/1, 1, 1/20/7, 6. दुवालसंगे गणिपिंडगे। नन्दी, सू. 66,
SR No.004411
Book TitleAarhati Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalpragyashreeji Samni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year1998
Total Pages384
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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