________________ विशेषावश्यकभाष्य : एक परिचय [ग्रन्थ एवं ग्रन्थकार] आगम आत्म-दर्शन भारतीय विचार-सरणी का मुख्य केन्द्रीय तत्त्व है / प्राचीन युग में आत्म-साक्षात्कार-कर्ता द्रष्टा पुरुष मौजूद थे। सम्प्रति उनके अभाव में उनकी अनुभव निःसृत वाणी जिज्ञासुओं का मार्गदर्शन कर रही है / आत्मा तथा तत्सम्बन्धित उनका चिन्तन प्रवचन आज आगम/पिटक/वेद/उपनिषद् आदि नामों से विश्रुत हैं / जैन धर्म की यह अवधारणा है कि राग-द्वेष आदि आत्म-शक्ति अवरोधक मलों के नाश हो जाने से आत्मा की सम्पूर्ण शक्तियां उद्घाटित हो जाती हैं। सम्पूर्ण शक्ति का विकास/प्रकाश ही सर्वज्ञता है। उस सर्वज्ञ अर्थात् आप्त पुरुष के वचन/प्रवचन को ही आगम' कहा जाता है / आगम के अनेक निर्वचन एवं परिभाषाएं उपलब्ध हैं जिसके द्वारा अर्थ (तत्त्वार्थ) जाने जाते हैं, वह आगम है। अधिकांश परिभाषाओं में आप्त वचन से उत्पन्न अर्थज्ञान को ही आगम कहा गया है। आप्त पुरुष राग-द्वेष आदि दोषों से मुक्त होते हैं, अतः उनके वचन ही प्रमाणभूत हैं, वे ही आगम हैं। पूर्वापर दोषरहित एवं शुद्ध आप्तवचन को आगम कहा जाता है। तीर्थकर अर्थागम के कर्ता होते हैं। तथा उनके वचनों को अतिशय सम्पन्न विद्वान गणधर शासन के हित के लिए सूत्र में गुम्फित कर लेते हैं। वर्तमान में उपलब्ध आगम भगवान् महावीर की देशना के हैं। जैन-परम्परा में वर्तमान में शास्त्र के लिए आगम शब्द व्यापक हो गया है। किन्तु प्राचीन काल में वह श्रुत या सम्यक् श्रुत के नाम से प्रचलित था। इसीसे, 'श्रुतकेवली' शब्द प्रचलित हुआ। 'आगमकेवली या सूत्रकेवली' ऐसा प्रयोग उपलब्ध नहीं होता है / आचार्य उस्वाति ने भी श्रुत के पर्यायवाची शब्द के रूप में आगम शब्द का प्रयोग किया है / उन्होंने आप्तवचन, आगम, उपदेश, ऐतिह, आम्नाय, प्रवचन और जिनवचन को श्रुत के पर्याय शब्द कहे हैं। इनमें आज आगम.शब्द ही विशेष रूप से प्रचलित हैं। भगवान् महावीर के उपदेशों को गणधरों ने सूत्र में ग्रथित किया। वे उपदेश बारह भागों में विभक्त थे। अतः उनको 'द्वादशांगी' कहा गया। द्वादशांगी का अपर