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________________ विभिन्न भारतीय दर्शनों में आश्रव सभी भारतीय चिन्तकों ने आत्मा के अस्तित्व को स्वीकार किया है / आत्मा के शुद्ध स्वरूप के निरूपण के अवसर पर उसे अनन्त ज्ञान, अनन्त दर्शन, अनन्त आनन्द, अनन्त शक्ति सम्पन्न, निर्लेप, शुद्ध, निरंजन, निराकार आदि अनेक विशेषणों से अभिहित किया जाता है किन्तु संसारावस्था में उसका स्वरूप वर्णित स्वरूप से भिन्न प्रकार का होता है। उसके ज्ञान, आनन्द, शक्ति आदि स्वभाव संसारावस्था में सीमित होते हैं, अतः सभी दार्शनिकों ने आत्मा की दो अवस्थाएँ स्वीकार की हैं—बद्ध-आत्मा और मुक्त-आत्मा / मुक्तावस्था में आत्मा शुद्ध स्वरूपवाली ही होती है / वह अनन्त चतुष्ट्यी से सम्पन्न होती है किन्तु बद्धावस्था में वह कर्मों से आवृत्त रहती है, अतः कर्म बन्धन के कारण उसके असीमित ज्ञान आदि स्वभाव में सीमितता आ जाती है। आत्मा कर्मों से क्यों बंधती है ? बन्धन का हेतु क्या है ? इन बन्धन के कारणों की मीमांसा भी दार्शनिकों के चिन्तन का विषय रहा है। - कर्मबन्ध के हेतुओं का निरूपण विभिन्न दर्शनों में पृथक्-पृथक् नाम से हुआ है / जैन एवं बौद्ध दर्शन में कर्मबन्ध के हेतुओं को आश्रव/आसव कहा गया है / जैन सिद्धान्त दीपिका में आश्रव को परिभाषित करते हुए कहा गया. 'कर्माकर्षणहेतुरात्मपरिणाम आश्रवः' कर्म आकर्षण के हेतुभूत आत्म परिणाम को आश्रव कहा जाता है / जिस आत्म-परिणाम से आत्मा में कर्मों का आश्रवण-प्रवेश होता है, उसे आश्रव अर्थात् कर्मबन्ध का हेतु कहा जाता है। . कर्मबन्ध के हेतरूप में आश्रव शब्द का प्रयोग जैन, बौद्ध परम्परा में हआ है। किन्तु इस बन्धन हेतु रूप आश्रव की स्वीकृति तो नामान्तर से प्रायः सभी भारतीय दर्शन परम्परा में है। जीव/आत्मा के अस्तित्व को स्वीकार करनेवाले सभी भारतीय दर्शनों ने बन्ध और मोक्ष को स्वीकार किया है / समस्त दर्शनों ने अविद्या, मोह, अज्ञान, मिथ्याज्ञान को बन्ध अथवा संसार का कारण तथा विद्या, तत्त्वज्ञान, भेदविज्ञान आदि को मोक्ष का हेतु माना है। दार्शनिक प्रस्थान का यह सर्वसम्मत विचार है / विभिन्न दर्शनों में यह विचार किस रूप में प्रस्फुटित है उसका अवलोकन करना प्रस्तुत प्रसंग में काम्य है।
SR No.004411
Book TitleAarhati Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalpragyashreeji Samni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year1998
Total Pages384
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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