________________ 204 / आर्हती-दृष्टि से उसके आन्तरिक व्यक्तित्व का निर्माण होता है / व्यक्तित्व की सर्वांगीण व्याख्या के लिए भावों का अध्ययन बहुत महत्त्वपूर्ण है / क्षयोपशम भाव व्यक्तित्व का निर्धारक तत्त्व है। वर्तमान जीवन संचालन एवं निर्माण में क्षयोपशम का महत्त्वपूर्ण स्थान है। जैन कर्म सिद्धान्त के अनुसार व्यक्ति अपने पुरुषार्थ के द्वारा क्षयोपशम भाव को सतत वृद्धिंगत कर सकता है। उपशम अंशकालीन होता है तथा क्षय फलित रूप होता है किन्तु क्षयोपशम दीर्घकालीन एवं सतत आत्मा को विकास के पथ पर अग्रसर करनेवाली महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया है। साधना के क्षेत्र में क्षयोपशम का महत्त्वपूर्ण स्थान है / क्षय की अवस्था बारहवें गणस्थान से प्राप्त होती है, उससे पूर्व साधक अपने क्षयोपशम भाव को ही बढ़ाता रहता है / क्षयोपशम-प्रक्रिया के द्वारा वह निरन्तर अपने लक्ष्य की ओर अभिमुख रहता है। यह क्षयोपशम भाव संसार के सभी छोटे-बड़े जीवों में रहता है। निगोद जैसे स्वल्प विकसित जीव में भी क्षयोपशम भाव की नियमा है / नन्दी-सूत्र में कहा गयाअक्षर के अनन्तवें भाग जितना जीव नित्य उद्घाटित रहता है अन्यथा जीव भी अजीव बन जाये। यह शाश्वत नियम है कि जीव कभी अजीव नहीं बन सकता, अजीव कभी जीव नहीं बन सकता है / इसलिए क्षयोपशम को समझना आवश्यक है। .. क्षयोपशम, क्षय और उपशम इन दो शब्दों से निष्पन्न होता है / कर्म सिद्धान्त के प्रसंग में कर्मों के समूल नाश को क्षय कहा जाता है। जिस समय कर्म के विपाकोदय एवं प्रदेशोदय का सर्वथा अभाव होता है वह उपशम की अवस्था कहलाती है। क्षयोपशम के प्रकरण में क्षय एवं उपशम शब्द का अर्थ भिन्न है / क्षयोपशम काल में क्षय और प्रदेशोदय अथवा मन्द विपाकोदय चलता रहता है। उपशम भाव में मोहनीय कर्म का न तो क्षय होता है न उदय / वह सुप्त अवस्था जैसा शान्त हो जाता है किन्तु उसकी सत्ता बनी रहती है, अतः औपशमिक भाव के प्रकरण में उपशम का अर्थ क्षायोपशमिक भाव के उपशम से भिन्न है। धवला में क्षयोपशम को परिभाषित करते हुए कहा गया है कि सर्वघाती स्पर्धक अनन्तगुण हीन होकर देशघाती स्पर्धक में परिणत होकर उदय में आता है। उस सर्वघाती स्पर्धक का अनन्तगुण हीन होना ही क्षय है तथा उनका देशघाती स्पर्धक के रूप में अवस्थान होना उपशम है / उन्हीं क्षय एवं उपशम से संयुक्त उदय क्षयोपशम कहलाता है। सर्वार्थ सिद्धि के अनुसार सर्वघाती स्पर्धकों के उदय का क्षय होने से तथा उनका ही सदवस्था रूप उपशम होने से एवं देशघाती स्पर्धकों का उदय होने से क्षयोपशमिक भाव निष्पन्न होता है। इन दोनों उल्लेखों में क्षयोपशम की परिभाषा