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________________ 162 / आर्हती-दृष्टि जिनके व्यवहार उनसे भिन्न हैं। इस परिभाषा से यह स्पष्ट हो जाता है कि विभिन्न समाजों को एक-दूसरे से पृथक् करने का आधार उनके सामाजिक सम्बन्धों की ही भिन्नता है तथा समाज मात्र व्यक्तियों का समूह नहीं है बल्कि उनके बीच पाये जानेवाले सम्बन्धों की व्यवस्था है। रेयूटर (Reuter) के अनुसार, समाज एक अमूर्त धारणा है जो एक समूह के सदस्यों के बीच पाये जानेवाले पारस्परिक सम्बन्धों की सम्पूर्णता का बोध कराती है। इन सभी परिभाषाओं के निष्कर्ष रूप में प्राप्त होता है कि समाज अमूर्त है / वह मात्र व्यक्तियों का समूह नहीं है बल्कि उनके पारस्परिक सम्बन्धों की एक व्यवस्था है। सामाजिक ढाँचे, सामाजिक प्रक्रियाओं, समूहों तथा उनके अन्तर्सम्बन्धों के विज्ञान को समाज शास्त्र कहते हैं। समाज शास्त्र की विषय-वस्तु का क्षेत्र विस्तृत है। उसके अन्तर्गत जीवन से सम्बन्धित सब पहलुओं का समावेश हो जाता है। समाज व्यवस्था के कुछ प्रश्नों का समाधान इस निबन्ध में अनेकान्त दृष्टि से खोजने का विनम्र प्रयास किया गया है। व्यक्ति समाज का सम्बन्ध और अनेकान्त समाज और व्यक्ति का व्यष्टि और समष्टि का सम्बन्ध है। समाज समष्टि एवं व्यक्ति व्यष्टि है। समाज का एक घटक है—व्यक्ति / जैसा व्यक्ति होगा वैसा ही समाज होगा। समाजशास्त्रियों का मन्तव्य है कि व्यक्ति का वास्तविक अस्तित्व समाज में ही सम्भव है। इसीलिए अरस्तु ने मनुष्य को 'सामाजिक प्राणी' कहा है। 'Man is a rational animal'. समाज व्यक्ति की सुरक्षा एवं उसके व्यक्तित्व निर्माण का साधन बनता है अतः व्यक्ति अकेला नहीं रहता वह सामूहिक जीवन-यापन करता है / व्यक्ति और समाज ये दो वास्तविकताएँ हैं / व्यक्तिवादी दार्शनिकों के अनुसार मनुष्य समाज से बाहर का प्राणी है अथवा रह सकता है। इस मान्यता में यह विचार निहित है कि मनुष्य समाज में प्रवेश करने से पूर्व व्यक्ति विशेष है। वे अपनी सम्पत्ति, अधिकार, जीवन की सुरक्षा अथवा अन्य किसी इच्छित उद्देश्य की पर्ति के लिए सामाजिक व्यवस्था की स्थापना करते हैं। समाजवादी दार्शनिकों का सिद्धान्त यह है कि व्यक्ति और समाज को एक-दूसरे से पृथक् नहीं किया जा सकता / मानव विकास के इतिहास में व्यक्ति ने समाज के द्वारा ही प्रगति की है / अतः समाज ही मुख्य है / एक विचारधारा ने व्यक्ति को सर्वोपरि स्थान प्रदान किया है तो दूसरी ने समाज को। अनेकान्तवाद व्यक्ति एवं समाज के सम्बन्ध की सापेक्ष व्याख्या करता है। व्यक्ति में वैयक्तिकता और समाजिकता इन दोनों के मूल तत्त्व सन्निहित हैं। समाज में भी सामाजिकता एवं वैयक्तिता दोनों के
SR No.004411
Book TitleAarhati Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalpragyashreeji Samni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year1998
Total Pages384
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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