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________________ ढंग से विपुल सामग्री प्रस्तुत करता है / मल्लवादी के द्वादशार नयचक्र सम्बन्धी लेख में लेखिका ने अल्प परिचित विषय की ओर हमारा ध्यान आकृष्ट किया है। भारतीय दर्शनों का वस्तुवादी एवं प्रत्ययवादी दर्शनों के रूप में विभाजन सभी दर्शनों की समझ को बढ़ाने वाला है। प्रसङ्गवश मिथ्यात्वी की करणी से निर्जरा होने का सिद्धान्त भी आया है जो लेखिका के परम आराध्य आचार्य भिक्षु का योगदान है। दृष्टिवाद के अन्तर्गत उत्कालिक सूत्र के शब्दार्थ का विश्लेषण करते हुये लेखिका ने कहा है कि इस सूत्र में अन्य दर्शनों का वर्णन था; 'अन्य दार्शनिक जिस किसी भी समय चर्चा के लिए आ जाते थे अत: उसका समय निश्चित नहीं था, अत: वह उत्कालिक सूत्र के रूप में परिगणित था।' इन सब प्रसङ्गों से लेखिका की बहुश्रुतता, दार्शनिक विषयों के उपस्थापित करने की क्षमता और मौलिक सूझ-बूझ परिलक्षित होती है। लेखिका एक समणी हैं / उनका गुरु के प्रति सर्वतोभावेन समर्पणभाव है / तेरापंथ के नवम आचार्य श्री तुलसी और वर्तमान दशम आचार्य श्री महाप्रज्ञ की देखरेख में उनकी शिक्षा-दीक्षा हुयी है। इन दोनों आचार्यों ने अपने आचार्य नाम को अन्वर्थक बनाते हुये संघ में पूर्ण शक्ति से आचार का प्रवर्तन किया। जैन-परम्परा में आचार शब्द इतना व्यापक है कि उसके अन्तर्गत दर्शन, चरित्र,तप एवं वीर्य के साथ ज्ञान भी समाविष्ट हो जाता है। प्रस्तुत कृति ज्ञानाचार की आराधना का अभिनव फल है / मैं व्यक्तिगतरूप से भी लेखिका की साधना का साक्षी रहा हूं और इस आधार पर कह सकता हूं कि उनकी साधना के परिणाम स्वरूप और भी अधिक सरस, सुस्वादु तथा सुगन्धित फल हमें प्राप्त होने वाले हैं। उनके नाम में पड़ा मंगल शब्द उनकी साधना के समस्त विघ्नों का नाश करेगा, इसी आशा सहित, . दुर्गाष्टमी, विक्रम सम्वत 2055 डॉ. दयानन्द भार्गव विभागाध्यक्ष, जैन विद्या एवं तुलनात्मक धर्म, दर्शन विभाग जैन विश्व भारती संस्थान, ( मान्य-विश्व-विद्यालय) लाडनूं
SR No.004411
Book TitleAarhati Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalpragyashreeji Samni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year1998
Total Pages384
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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