________________ अनेकान्त का तात्त्विक एवं तार्किक आधार | 155 10. पृथ्वी जलं तथा तेजो वायुर्भूत चतुष्टयम्। . चैतन्यभूमिरेतेषां मानं त्वक्षजमेव हि // . . षड्दर्शन समुच्चय, श्लोक 83 / 11. . तत्र ते सर्वास्तिवादिनो बाह्यमन्तरं च वस्तु अभ्युपगच्छति भूतं च भौतिकं च चित्तं च चैतं च। .. शांकरभाष्य 2/2/17 / 12. नीलपीतादिभिश्चित्रैर्बुद्ध्याकारैरिहान्तरैः। सौत्रान्तिकमते नित्यं बाह्यार्थस्त्वनुमीयते // सर्वसिद्धान्त संग्रह, पृ. 13 / 13. मूलप्रकृतिरविकृतिर्महदाद्यः प्रकृतिविकृतयः सप्त। षोडषकश्च विकारो न प्रकृतिः न विकृतिः पुरुषः // सांख्यकारिका, का. 3 / 14. 'प्रमाणप्रमेय संशयप्रयोजन तत्त्वज्ञानाद् निश्रेयसाधिगमः' / न्यायदर्शन 1/1 / 15. प्रमाणमीमांसा, प्रस्तावना, पृ. 2 / 16. (क) सव्वे सरा णियटृति। आयारो 5/123 / . (ख) तक्का जत्थ ण विज्जइ।.. . वही 5/124 / .. (ग) मई तत्थ न ग्राहिया। .. वही 5/125 / .. (घ) उवमा ण विज्जई। वही 5/137 / 17. तुमंसि नाम सच्चेव जं हंतव्वं ति मनसि। वही 5/101 / 18. स्थानांग 1/1 / / 19. जाणदि पस्सदि सव्वं ववहारणयेण केवली भगवं / केवलणाणी जाणदि पस्सदि नियमेण अप्पाणं // नियमसार गाथा, 159 20. उदयति न नयश्रीरस्तमेति प्रमाणं, क्वचिदपि न विद्यो याति निक्षेपचक्रम् / किमपरमभिध्मो धाम्नि सर्वंकषेऽस्मिन्ननुभवमुपयाते भाति न द्वैतमेव // समयसार, आत्मख्याति, पृ. 75, कारिका-९ / 21. नानाज्ञानस्वभावत्वात् एकोऽनेकोऽपि नैव सः। . चेतनैकस्वभावत्त्वात् एकानेकात्मको भवेत् // स्व. संबोधन, श्लोक 6 / 22. ठाणं सूत्र, पृ. . 23. णिययवयणिज्ज सच्चा सव्वनया परवियालणे मोहा। ... ते उण ण दिट्ठसमओ विभयइ सच्चे व अलिए वा॥ सन्मतितर्क प्रकरण 1/28 /