________________ अनेकान्त का तात्त्विक एवं तार्किक आधार / 151 की अपेक्षा तो नास्ति रूप ही है। यही शर्त मध्य व्यावर्तक नियम के सन्दर्भ में है। ___ अनुभव निरपेक्ष तर्क के आधार पर विचार के नियमों की व्याख्या करनेवालों को भी मध्य व्यावर्तक नियम के सन्दर्भ में अनुभव का उपयोग करना ही होगा। 'घोड़ा या तो लाल है या लाल नहीं है' इसकी प्रामाणिकता निःसन्देह अनुभव से ही जानी जा सकती है। .. अस्तित्व एवं नास्तित्व दोनों एक साथ नहीं रह सकते यह वैचारिक स्तर पर माना जा सकता है किन्तु वस्तु जगत् में मात्र अस्तित्वयुक्त अथवा मात्र नास्तित्वयुक्त कोई भी वस्तु नहीं है / वस्तु में अस्तित्व एवं नास्तित्व युगपत् है / जैन के अनुसार विचार के नियम तब ही सत्य एवं प्रामाणिक हो सकते हैं, यदि वे वस्तु के नियम हों। यदि वे मात्र तर्क के नियम हैं तो वस्तुबोध में उनकी प्रामाणिकता नहीं हो सकती। - यदि निरपेक्ष तर्क से वस्तु का स्वरूप जाना जाता तो वेदान्त और बौद्ध जो निखालिस तर्क के आधार पर चलते हैं, उनके वस्तु के सन्दर्भ में एक जैसे विचार होने चाहिए थे किन्तु उन दोनों के वस्तु के सम्बन्ध में परस्पर सर्वथा विरोधी विचार अन्य दर्शनों में एकत्र विरोध की स्वीकृति _ अन्य एकान्तवादी दर्शनों में अनेक स्थलों पर एकत्र विरोधी धर्मों का स्वीकार हुआ है। ऋग्वेद का नासदीय सूत्र इसका प्रमाण है / उस समय न असत् था न सत् था। इसकी व्याख्या में भाष्यकार सायण यह कहते हुए भी कि सत्, असत् परस्पर विरोधी हैं फिर भी उनका एकत्र सहावस्थान स्वीकार करते हैं / उपनिषदों में अनेक स्थलों पर ब्रह्म में विरोधी धर्मों को स्वीकार किया है। कठोपनिषद् में कहा गया है-'बैठा हुआ दूर चला जाता है, सोया हुआ सर्वत्र पहुँच जाता है / कठोपनिषद् के इसी मन्त्र की व्याख्या में स्वयं शंकराचार्य ने ज्ञात या अज्ञात रूप से एकत्र विरोधी.धर्मों को स्वीकार किया है। - ईशावास्योपनिषद् में ब्रह्मस्वरूप का वर्णन करते हुए कहा गया है, वह आत्म तत्त्व चलता भी है और नहीं भी चलता / वह दूर भी है और समीप भी है" / आत्मतत्त्व में आगत इन विरोधी धर्मों को स्वयं शंकराचार्य ने अपेक्षा भेद से ही समाहित किया है। वह ब्रह्म अज्ञानियों को सैंकड़ों करोड़ वर्षों में भी अप्राप्य है / अतः वह दूर है और वही विद्वानों की अपेक्षा अत्यन्त समीप हैं / तदेजति इस मन्त्र की व्याख्या में ईश के भाष्यकार उव्वट भी अपेक्षा का ही. प्रयोग करते हैं / वह आत्मा सर्वप्राणियों में अवस्थित है अतः क्रियाशील है तथा वही