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________________ 130 / आईती-दृष्टि ___4. भावनिक्षेप–पदार्थ का वर्तमान पर्यायाश्रित व्यवहार भाव निक्षेप है। 'विवक्षितक्रिया परिणतो भाव:' विवक्षित क्रिया में परिणत वस्तु को भाव निक्षेप कहा जाता है / जैसे- स्वर्ग के देवों को देव कहना। भावनिक्षेप भी आगमतः नोआगमतः के भेद से दो प्रकार का है। (1) आगमत:-उपाध्याय के अर्थ को जाननेवाला तथा उस अनुभव में परिणत व्यक्ति को आगमतः भाव उपाध्याय कहा जाता है। (2) नोआगमतः-उपाध्याय के अर्थ को जाननेवाले तथा अध्यापन-क्रिया में प्रवृत्त व्यक्ति को नोआगमतः भाव उपाध्याय कहा जाता है। चारों ही निक्षेपों को संक्षेप में व्याख्यायित करते हुए कहा है. नाम जिणा जिननामा ठवणजिणा हुंति पडिमाओ। दव्वजिणा जिन जीव भावजिणा समवसरणत्या॥ नय और निक्षेप का सम्बन्ध–नय और निक्षेप का विषय-विषयी सम्बन्ध है। आचार्य सिद्धसेन दिवाकर ने इनके सम्बन्ध को स्पष्ट करते हुए कहा है कि नामं ठवणा दविए त्ति एस दव्वट्ठियस्स निक्खेवो। भावो उ पज्जवट्ठिअस्स एस परमत्थो॥ नाम स्थापना एवं द्रव्य का सम्बन्ध तीन काल से है अतः इसका सम्बन्ध द्रव्यार्थिक नय से है तथा भाव-निक्षेप मात्र वर्तमान से सम्बन्धित है। अतः यह पर्यायार्थिक नय का विषय है। निक्षेप का आधार-निक्षेप का आधार प्रधान-अप्रधान, कल्पित और अकल्पित दृष्टि बिन्दु है। भाव अकल्पित दृष्टि है, इसलिए प्रधान होता है। शेष तीन निक्षेप कल्पित हैं / अतः वे अप्रधान हैं / नाम में, पहचान, स्थापना में आकार की भावना होती है। गुण की वृत्ति नहीं होती। द्रव्य मूल वस्तु की पूर्वोत्तर दशा या उससे सम्बन्ध रखनेवाली अन्य वस्तु होती है अतः इसमें मौलिकता नहीं होती। भाव मौलिक है। निक्षेप पद्धति जैन आगम एवं व्याख्या ग्रन्थों की मुख्य पद्धति रही है। अनुयोग परम्परा में इसका महत्त्वपूर्ण स्थान है / सम्पूर्ण व्यवहार का कारण निक्षेप पद्धति है। निक्षेप के अभाव में अर्थ का अनर्थ हो जाता है / संक्षेप में, निक्षेप पद्धति भाषा प्रयोग की वह विधा है जिसके द्वारा हम वस्तु का अभ्रान्त ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं।
SR No.004411
Book TitleAarhati Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalpragyashreeji Samni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year1998
Total Pages384
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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