________________ 12 / आर्हती-दृष्टि भी मनुष्य स्वभाव की कुछ ऐसी मूलभूत प्रवृत्तियां हैं जो बदलती नहीं; उन प्रवृत्तियों से सम्बद्ध समस्याएं और समाधान शाश्वत हैं। आगम उन्हीं शाश्वत समाधानों का प्रतिनिधि है / तर्क के आधार पर इन समाधानों के साथ छेड़छाड़ करना मानव-कल्याण के साथ खिलवाड़ करना है। भारतीय दार्शनिक तर्क की नौका को विचार की सरिता में खेते समय श्रद्धा की पतवार कभी नहीं छोड़ता और इसलिए उसकी नौका एक दिन उस तट पर आ लगती है जिसे मुक्ति कहा जाता है और जहां स्वयं तर्क की नौका भी अनावश्यक हो जाती है / जीवन के शाश्वत मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता के अभाव में दार्शनिक का तर्क-वितर्क केवल वागविलास या वाक्छल ही होकर रह जाता है ।समणी मंगलप्रज्ञाजी की कृति में मोक्ष की प्रबल इच्छा प्रतिबिम्बित होती है, वाग्विलास की बाल चपलता नहीं। आस्था के बिना तर्क-वितर्क मनोरञ्जन भले ही कर दे, लेकिन जीवन को कोई निश्चित दिशा नहीं दे पाता। भारतीय परम्परा में जैन, बौद्ध अथवा वैदिक, किसी भी सम्प्रदाय के दार्शनिक क्यों न रहे हों, उन्होंने हजारों-हजारों साधकों को दिशा दी है। पश्चिम का दार्शनिक यह नहीं कर पाया। जैन-दर्शन की एक विशेषता है कि वह किसी दृष्टि को एक दृष्टिकोण ही मानता है, सम्पूर्ण सत्य का प्रतिनिधि नहीं। इसलिए उसके लिए दृष्टि की विभिन्नता अथवा दृष्टि का पारस्परिक विरोध भी कोई समस्या उत्पन्न नहीं करता प्रत्युत सत्य के वृहद् से वृहत्तर रूप को उजार करने का माध्यम बनने के कारण अभिनन्दनीय ही सिद्ध होता है। अनेकान्त का यह दृष्टिकोण अन्त में दार्शनिकता को'द्रष्टत्व में परिणत कर देता है। यदि सम्पूर्ण समुद्र को दृष्टि से ओझल नहीं किया जाये तो समुद्र जल की एक बँद सम्पूर्ण समुद्र के जल के स्वाद से हमें परिचित करवा सकती है। जैन आचार्य 'कथञ्चित्' के पक्षपाती रहे हैं, 'सर्वथा' का उन्होंने सर्वदा विरोध किया है परसमयाणं वयणं मिच्छं खलु सव्वहा वयणा। जेणाणं पुण वयणं सम्मं खु कहंचि वयणादो। समणी मंगलप्रज्ञाजी ने 'आर्हती-दृष्टि' में अनेक विचारोत्तेजक प्रश्न उठाये हैं। उनका प्रथम लेख ही यह प्रश्न उपस्थित करता है कि जड़ और चेतन में परस्पर सम्बन्ध कैसे स्थापित होता है ? प्रश्न रोचक है किन्तु ऐसा नहीं है कि इसका उत्तर इदमित्थन्त्रया दिया जा सके। जैन आचार्य अनेकान्त पर आधृत भेदाभेदवाद का आश्रय लेकर प्रश्न का उत्तर देना चाहते हैं। बहुश्रुत लेखिका ने अन्य दर्शनों के भी समाधानों की ओर लेख में इङ्गित किया है / लेख में केवल सङ्कलन नहीं है, मौलिकता भी है, उदाहरणत: