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________________ द्वादशार नयचक्र में नय का विश्लेषण / 125 . आचार्य मल्लवादी ने कहा कि वादों का यह चक्र चलता ही रहता है। अतः अनेकान्त का अवलम्बन आवश्यक है। अनेकान्त का आश्रय लेकर ही वस्तु तत्त्व का सम्यग् व्याख्यान किया जा सकता है। अनेकान्त चिन्तन की प्रक्रिया को अवरुद्ध नहीं करता किन्तु उसे एक खुला वातायन प्रदान करता है / अनेकान्त के सन्दर्भ में आचार्य मल्लवादी ने चिन्तन-प्रक्रिया का एक नवीन प्रारूप प्रस्तुत किया है। अनेकान्त के आलोक में ही दार्शनिक समस्याओं का समुचित समाधान हो सकता है / अनेक दर्शनों के परिप्रेक्ष्य में इस सच्चाई को अनुभूत किया जा सकता है / अद्वैत वेदान्त ब्रह्म तत्त्व के प्रतिपादन के बाद जगत की व्याख्या करता है तो मायावाद के रूप में अनेकान्त का ही आश्रय लेता है। सांख्य दर्शन में यह स्वीकृत किया गया है कि प्रकृति पुरुष के सदृश भी हैं और विसदृश भी है स्पष्ट रूप से यह अनेकान्त का उदाहरण है। बौद्ध दर्शन भी कहता है कि पर्याय न तो शाश्वत है न उसका सर्वथा उच्छेद है। प्रतीत्यसमुत्पाद के रूप में अनेकान्त की स्वीकृति है / अतः यह स्पष्ट रूप से सिद्ध हो जाता है / वस्तु व्यवस्था में अनेकान्त सिद्धान्त का महत्त्वपूर्ण योगदान है। द्वादशार नयचक्र के माध्यम से आचार्य मल्लवादी ने इसी सत्य को उजागर करने का प्रयलं किया है। नयचक्र मूलरूप में प्राप्त नहीं है किन्तु सिंहसूरिगणिकृत न्यायागमानुसारिणी टीका के रूप में ही उपलब्ध है। यह ग्रन्थ तत्कालीन सम्पूर्ण दर्शनों के स्वरूप ज्ञान के लिए अत्यन्त उपयोगी है। सांख्य, नैयायिक, वैशेषिक, मीमांसक, अद्वैत, बौद्ध, भर्तृहरि, षडंगयोग, पाणिनीय, यास्क आदि के पाठ नयचक्र में उद्धृत हैं / भागुरि, सौनाग, चरकसंहिता के पाठ भी इसमें उद्धृत है। अतः यह ग्रन्थ दर्शन अध्येताओं एवं इतिहासवेताओं की नई अवधारणा में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकता है / अपेक्षा है इस ग्रन्थ के नये-नये तथ्य विद्वज्जन जनता के समक्ष प्रस्तुत करें।
SR No.004411
Book TitleAarhati Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalpragyashreeji Samni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year1998
Total Pages384
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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