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________________ 124 / आर्हती-दृष्टि इस नय का तात्पर्य यह है कि द्रव्य और क्रिया का तादात्म्य नहीं है। 'द्रव्यं भवति क्रियापि भवति' इस अर में वैयाकरण सिद्धान्त को ध्यान में रखकर निरूपण किया गया है / यह नैगम नय के अन्तर्गत द्रव्यार्थिक नय है। 6. षष्ठ उभयविधि अर में द्रव्य एवं क्रिया के अभेद का निरास करके वैशेषिक मत के अनुसार द्रव्य एवं क्रिया के भेद को सिद्ध किया गया है। 7. सप्तम अर में वैशेषिक सम्मत सत्ता, समवाय सम्बन्ध आदि का निरास करके ऋजुसूत्र नय का आश्रय लेकर बौद्धों के अपोहवाद की स्थापना की गयी है। 8. अष्टम अर में अपोहवाद का खण्डन करेक वैयाकरणकार भर्तृहरि के मत का समर्थन किया गया है तथा तत्पश्चात् शब्दाद्वैत के विरुद्ध ज्ञान पक्ष को स्थापित किया है। प्रवृत्ति निवृत्ति ज्ञान के बिना सम्भव नहीं है / शब्द तो ज्ञान का उपजीवी है अतः ज्ञान ही प्रधान है / ज्ञान निर्विषयक नहीं होता अतः ज्ञान के विरुद्ध स्थापना निक्षेप का उत्थान है। 9. नवम अर में प्रतिपादित किया गया है कि वस्तु को न तो सामान्यैकान्त कहा जा सकता है न विशेषैकान्त वह अवक्तव्य है। यह नय शब्द नय के अन्तर्गत है। 10. दशम अर में अवक्तव्यवाद का निरास करके समभिरूढ़ नय का आश्रय लेकर बौद्ध दृष्टि के अनुसार द्रव्योत्पत्ति गुणरूप है अन्य कुंछ नहीं / मिलिन्द प्रश्न में कहा गया है रथ कुछ नहीं रथांगों का समूह मात्र है। 11. एकादशम अर में सम्पूर्ण पदार्थों की क्षणिकता को सिद्ध किया गया है। 12. बारहवें अर में शून्यवाद की स्थापना की गयी है। प्रथम विधिनय मीमांसक दर्शन का समर्थन करता है उसका निरास करते हुए दूसरा नय पुरुषाद्वैत का समर्थन करता है तथा फिर क्रमशः एक-दूसरे का निरास करते हए काल, स्वभाव, नियति आदि सारे अद्वैतों की समीक्षा करता है। तीसरा अद्वैत का निराकरण करके द्वैतवाद की स्थापना करता है। चौथा ईश्वर अधिष्ठित द्वैतवाद का निराकरण करके कर्मवाद की स्थापना द्वारा सर्वात्मकता का कथन करता है। पांचवां कहता है द्रव्य की तरह क्रिया भी भाव रूप है। उनमें तादात्म्य है। वैयाकरण मत का समर्थन षष्ठ वैशेषिक मत के अनुसार द्रव्य क्रिया के भेद को प्रस्तुत करता है। सातवें में अपोहवाद का समर्थन है / आठवें में शब्द, ज्ञान, स्थापना, निक्षेप आदि का विवेचन है। नौवें ने वस्तु को अवक्तव्य माना है / दशवें ने द्रव्योत्पत्ति को गुण रूप माना है / ग्यारहवें ने सम्पूर्ण पदार्थों की क्षणिकता एवं बारहवें ने शून्यता के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया है।
SR No.004411
Book TitleAarhati Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalpragyashreeji Samni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year1998
Total Pages384
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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