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________________ - नोभागमभाव मनुष्योंमें धर्माधर्ममीमांसा उपलब्ध होता। साथ ही वहाँ पर कर्मभूमिजकी जघन्य आयु अन्तर्मुहूर्त और-उत्कृष्ट आयु एक पूर्वकोटि तथा अकर्मभूमिज (भोगभूमिज) की जघन्य आयु एक समय अधिक एक पूर्वकोटि और उत्कृष्ट आयु तीन पल्यप्रमाण बतलाई है, इसलिए यह प्रश्न उठता है कि कषायप्राभृतके चूर्णिकारने संयमभावसे युक्त कर्मभूमिज और अकर्मभूमिज मनुष्योंसे किनको स्वीकार किया है / यहाँ पर यह स्मरण रखना चाहिए कि षटखण्डागमके अभिप्रानुसार पन्द्रह कर्मभूमियोंमें उत्पन्न हुए मनुष्य एकमात्र कर्मभूमिज ही माने गये हैं। षट्खण्डागममें मनुष्यों के कर्मभूमिज और अकर्मभूमिज ये भेद अवश्य स्वीकार किये गये हैं पर वहाँ पर बे भेद उस अर्थमें नहीं आये हैं बो अर्थ यहाँ पर कषायप्राभृतचूर्णिके आधारसे आचार्य जिनसेनने किया है। स्पष्ट है कि कषायप्राभृतचूर्णिमें इन शब्दोंका कोई दूसरा अर्थ होना चाहिए / प्रकृतमें यही विचारणीय है कि वह अर्थ क्या हो सकता है ? प्रश्न महत्त्वका है / इससे जिस महत्त्वपूर्ण विषय पर प्रकाश पड़ना संभव है. उसका निर्देश हम आगे करनेवाले हैं / यहाँ पर सर्वप्रथम उस अर्थका विचार करना है। कषायप्राभृतचूर्णिकी मुख्य टीका जयधवला है। धवलामें भी दो स्थलोंपर चारित्रकथनके प्रसङ्गसे यह विषय आया है। एक स्थल पर तो अनुमानतः वही शब्द दुहराये गये हैं जो चूर्णिसूत्रमें उपलब्ध होते हैं / मात्र दूसरे स्थल ( जीवस्थान चूलिका पृ० 285 ) पर प्रतिपादनशैलीमें कुछ अन्तर है। किन्तु दोनों स्थलोका मध्यका महत्त्वपूर्ण अंश त्रुटित होने के कारण उस परसे ठीक निष्कर्ष निकालना कठिन है। विचारको चालना देनेमें इन स्थलोंका उपयोग हो सकता है इतना अवश्य है / फिर भी इन स्थलोंको छोड़कर यहाँ पर हम जयधवलाके आधारसे ही विचार करते हैं। जयधवलामें कषायप्राभृतचूर्णिके उक्त अंशकी व्याख्या करते हुए 'कर्मभूमिज' शब्दका अर्थ पन्द्रह कर्मभूमियोंके मध्यके विनीत संज्ञावाले खण्डमें उत्पन्न हुए मनुष्य किया है और 'अकर्मभूमिज' शब्दका
SR No.004410
Book TitleVarn Jati aur Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1989
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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