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________________ वर्ण, जाति और धर्म ऐसा कोई प्रतिबन्ध नहीं है। देवायुका बन्ध होने के बाद भी संयमासंयम और संयमभावकी प्राप्ति हो सकती है। इतना अवश्य है कि ऐसा मनुष्य क्षपकश्रेणिपर आरोहण नहीं कर सकता / उपशमश्रेणिको प्राप्तिमें उसे कोई बाधा नहीं है। आगामी भवसम्बन्धी किस आयुका बन्ध होनेके बाद किस मनुष्यको क्या योग्यता होती है इसके सम्बन्धमें यह व्यवस्था है। किन्तु जिसने आगामी भवसम्बन्धी किसी भी आयुकर्मका बन्ध नहीं किया उसे संयमासंयम और संयमभावको प्राप्त करनेमें कोई बाधा नहीं है। वह यदि चरमशरीरी है तो उसी भवमै आयुकर्मका बन्ध किये बिना क्षपकश्रेणिपर आरोहरकर मोक्षका पात्र होता है और यदि चरमशरीरी नहीं है तो जिसकी जैसी आन्तरिक योग्यता है उसके अनुसार उसे संयमासंयम या संयमभावकी प्राप्ति होती है। ऐसा मनुष्य इन परिणामोंके रहते हुए मात्र देवायुका बन्ध करता है। कदाचित् देवायुकर्मका बन्ध हुए बिना ये परिणाम छूटकर वह मिथ्यादृष्टि हो जाता है तो वह नरकायु, तियञ्चायु और मनुष्यायुका बन्धकर नरक और निगोद आदि दुर्गतियोंमें तथा मनुष्यगतिमें मरकर उत्पन्न हो सकता है। ऐसा कोई नियम नहीं है कि जिसे संयमासंयम या संयमभावकी प्राप्ति हुई है वह नियमसे उत्तम गतिमें हो जाता है और ऐसा भी कोई नियम नहीं है कि जो जीवन भर मिथ्यादृष्ठि बना हुआ है वह नियमसे दुर्गतिका ही पात्र होता है। इतना अवश्य है कि संयमासंयमभावके साथ मरनेवाला तिर्यञ्च और मनुष्य तथा संयमभावके साथ मरनेवाला केवल मनुष्य नियमसे देव होता है / जो जीव अतिशीघ्र प्रथम बार सम्यक्त्वको उत्पन्न करता है वह कुछ कम अर्धपुद्गलपरिवर्तन काल तक संसारमें नियमसे पभ्रिमण करता है। ऐसा करते हुए उसे केवल उत्तमोत्तम गति और भोग ही मिलते हों ऐसा भी नहीं है। अन्य संसारी जीवोंके समान वह भी विविध प्रकारके सुख-दुख और संयोग-वियोगका पात्र होता है। इस कालके भीतर यह जीव अधिकसे अधिक असंख्यात बार सम्यक्त्व और संयमासंयमको तथा इकतीस बार संयमको प्राप्त करके
SR No.004410
Book TitleVarn Jati aur Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1989
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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