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________________ वर्ण, जाति और धर्म भोजन करावे और यदि वैश्य और शूद्र अतिथिरूपसे ब्राह्मणके घर आये / ' हुए हों तो उन्हें अपने नौकर-चाकरोंके साथ भोजन करावे / इससे अधिक उनका आतिथ्य न करे। शूद्र सेवाकर्मके सिवा अन्य कर्म करनेका अधिकारी नहीं है। उसे विप्रकी सेवासे ही संतुष्ट रहना चाहिए / उसीमें उसके जीवनकी सफलता है / 2. संस्कार और व्रत ग्रहणकी पात्रता___ संस्कार और व्रत किसे दिये जाँय इस विषयमें मनुस्मृतिकी यह व्यवस्था है कि ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य इनकी द्विज संज्ञा होनेसे3 ये ही इनके अधिकारी हैं / वहाँ बतलाया है कि माताके उदरसे जन्म होना यह इनका प्रथम जन्म है, मौजीबन्धन अर्थात् उपनयन संस्कार होना यह दूसरा जन्म है और ज्योतिष्टोमादि यज्ञके समय वेद श्रवण करना यह इनका तीसरा जन्म है। यहाँ पर तीसरा जन्म द्वितीय जन्मके अन्तर्गत है, इसलिए इन . तीन वर्णवालोंको द्विज कहते हैं। जब इनका मोञ्जीबन्धनपूर्वक उपनयनसंस्काररूप ब्रह्मजन्म होता है तब इनकी सावित्री माता होती है और आचार्य पिता होता है, इसलिए इनका एक गर्भजन्म और दूसरा संस्कारजन्म होनेसे ये द्विजन्मा, द्विज यां द्विजाति कहे जाते हैं यह उक्त कथनका अभिप्राय है। किन्तु शूद्र उपनयन आदि संस्कारके योग्य नहीं है, इसलिए न तो इसके उपनयन आदि संस्कार होते हैं और न यह अग्निहोत्रादि धर्ममें अधिकारी माना गया है। इसे धर्म और व्रतका उपदेश न दे यह भी मनुस्मृतिकी आज्ञा है। वहाँ बतलाया है कि जो इसे धर्म और व्रतका उपदेश देता है वह उस शूद्रके साथ ही असंवृत नामके गहन नरकमें ... 1. मनुस्मृति अ०३ श्लो० 110 से 112 तक / 2. मनुस्मृति अ० 10 श्लो० 122 / 3. मनुस्मृति अ० 10 श्लो० 4 / 4. मनुस्मृति ' भ० 2 श्लो० 166 से 171 तक। 5. मनुस्मृति 10 10 श्लो० 126 / 6. मनुस्मृतिअ० 4 श्लो० 80 /
SR No.004410
Book TitleVarn Jati aur Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1989
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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