________________ वर्णमीमांसा जिसमें सम्यक्त्वकी हानि नहीं और व्रतोंमें दूषण नहीं आता, जैनोंको .प्रमाण है। -यशस्तिलकचम्पू आश्वास 8 पृ० 373 चत्वारो वेदाः शिक्षा कल्पो व्याकरणं निरुक्तं छन्दो ज्योतिरिति षडङ्गानीतिहासपुराणमीमांसान्यायधर्मशास्त्रमिति चतुर्दशविद्यास्थानानि त्रयी // 1 // त्रयीतः खलु वर्णाश्रमाणां धर्माधर्मव्यवस्था // 2 // स्वपक्षानुरागप्रवृत्त्या सर्वे समवायिनो लोकव्यवहारेष्वधिक्रियन्ते // 3 // धर्मशास्त्राणि स्मृतयो वेदार्थसंग्रहाद्वेदा एव // 4 // अध्ययनं यजनं दानं च विप्रक्षत्रियवैश्यानां समानो धर्मः // 5 // त्रयो वर्णा द्विजातयः // 6 // अध्यापन याजनं प्रतिग्रहो ब्राह्मणानामेव // 7 // भूतसंरक्षणं शस्त्रजीवनं सत्पुरुषोपकारो दीनोद्धरणं रणेऽपलायनं चेति क्षत्रियाणाम् // 8 // वार्ताजीवनमावेशिकपूजनं सत्रप्रपापुण्यारामदयादानादिनिर्मापणं च विशाम् // 6 // त्रिवर्णोपजीवनं कारुकुशीलवकर्म पुण्यपुटवाहनं च शूद्राणाम् // 10 // सकृत्परिणयनव्यवहाराः सच्छूद्राः // 11 // आचारानवद्यत्वं शुचिरुपस्कारः शारीरी च विशुद्धिः करोति शूद्रमपि देवद्विजतपस्विपरिकर्मसु योग्यम् // 12 // आनृशंस्यममृषाभाषित्वं परस्वनिवृत्तिरिच्छानियमः प्रतिलोमाविवाहो निसिद्धासु च स्त्रीषु ब्रह्मचर्यमिति सर्वेषां समानो धर्मः // 13 // आदित्यावलोकनवत् धर्मः खलु सर्वसाधारणो / विशेषानुष्ठाने तु नियमः // 14 // निजागमोक्तमनुष्ठानं यतीनां स्वो धर्मः // 15 // स्वधर्मव्यतिक्रमेण यतीनां स्वागमोक्तं प्रायश्चित्तम् // 16 // यो यस्य देवस्य भवेद्धावान् स तं देवं प्रतिष्ठापयेत् // 1 // अभक्त्या पूजोपचारः सद्यः शापाय // 18 // वर्णाश्रमाणां स्वाचारप्रच्यवने त्रयीतो विशुद्धिः // 16 // चार वेद हैं / शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छदस् और ज्योतिष 'ये छह उनके अङ्ग हैं / ये दस तथा इतिहास, पुराण, मीमांसा, न्याय और धर्मशास्त्र ये चौदह विद्यास्थान त्रयी कहलाते हैं // 1 // त्रयोके अनुसार