________________ वर्णमीमांसा जायगा अर्थात् वर्णव्यवस्थाका लोप हो जायगा 16-248 // युगनिर्माता भगवान् ऋषभदेवने कृषि आदि छह कर्मोको व्यवस्था राज्यप्राप्ति के पूर्व ही कर दी थी, इसलिए उस व्यवस्थाके कारण उस समय वह कर्मभूमि कहलाने लगी // 16-246 // मनुष्यजातिरेकैव जातिनामोदयोद्भवा / वृत्तिभेदाहिताझेदाचातुर्विध्यमिहाश्नुते // 38-45 // . ब्राह्मणा व्रतसंस्कारात् क्षत्रियाः शस्त्रधारणात् // वणिजोऽर्थाजनान्न्यायात् शूद्रा न्यग्वृतिसंश्रयात् // 38-46 // जाति नामकर्मके उदयसे उत्पन्न हुई मनुष्य जाति एक ही है। फिर भी आजीविकाके भेदसे होनेवाले भेदोंके कारण वह इस लोकमें चार प्रकारकी हो गई है / / 38-45 / / व्रतोंके संस्कारसे ब्राह्मण, शस्त्रोंके धारण करनेसे क्षत्रिय, न्यायपूर्वक अर्थका अर्जन करनेसे वैश्य और निम्न श्रेणी को आजीविकाका आश्रय लेनेसे शूद्र कहलाते हैं 38-46 // गुरोरनुज्ञया लब्धधनधान्यादिसम्पदः / पृथक्कृतालयस्यास्य वृत्तिवर्णाप्तिरिप्यते // 38-137 // धन-धान्य आदि सम्पदा और मकान मिल जाने पर पिताकी आज्ञासे अलगसे आजीविका करने लगनेको वर्णलाभ कहते हैं / / 38-137 / / सृष्ट्यन्तरमतो दूरं अपास्य नयतत्त्ववित् / अनादिक्षत्रियः सृष्टां धर्मसृष्टिं प्रभावयेत् // 40-186 // तीर्थकृद्भिरियं सृष्टा धर्मसृष्टिः सनातनी। तां संश्रितान्नृपानेव सृष्टिहेतून् प्रकाशयेत् // 40-110 // ... नय और तत्वको जाननेवाला द्विज दूसरोंके द्वारा रची हुई सृष्टिको दूरसे ही त्यागकर अनादि क्षत्रियोंके द्वारा रची गई धर्मसृष्टि की प्रभावना करे / / 40-186 // तथा इस सृष्टिका आश्रय लेनेवाले राजाओंको यह * कहकर सृष्टिके हेतु दिखलावे कि तीर्थङ्करोंके द्वारा रची गई यह धर्मसृष्टि ही सनातन हैं / / 40-160 //