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________________ 354 ____ वर्ण, जाति और धर्म ब्राह्मण पृथक् जाति है इस बातका निराकरण- . - 1. घोड़ीमें गधेके निमित्तसे उत्पन्न हुए बच्चोंसे घोडेके निमित्तसे उत्पन्न हुए बच्चोंमें जैसी विलक्षणता होती है वैसी विलक्षणता ब्राह्मणीके ब्राह्मणके निमित्तसे उत्पन्न हुए बच्चोंसे ब्राह्मणीमें शूद्रके निमित्तसे उत्पन्न हुए बच्चोंमें स्वप्नमें भी प्रतीत नहीं होती, इसलिए ब्राह्मण आदि पृथक् पृथक् जातियाँ नहीं हैं। ___ एतेन अनादिकाले तयोस्तत्प्रतिपत्तिः प्रत्याख्याता, ययोहि तज्जन्मम्यप्यविप्लुतत्वं प्रत्येतुं न शक्यते तयोः अनादिकाले तत् प्रतीयते इति महच्चित्रम् ? एतेन अनादिकालपितृप्रवाहापेक्षया अविप्लुतत्वप्रतिज्ञा प्रतिव्यूढा। 2. इस कथनसे माता पिताकी अनादि काल पूर्व तक निर्दोषताकी प्रतीति होती है यह बात भी नहीं रहती, क्योंकि जिनकी उसी जन्ममें निर्दोषताको प्रतीति करना शक्य नहीं है उनकी निर्दोषताको प्रतीति अनादि काल पूर्व तक होगी ऐसा सोचना महान् आश्चर्यकी बात है / इस प्रकार इस कथनसे अनादि कालीन पितृ-प्रवाहकी अपेक्षा जातिकी जो निर्दोषताकी प्रतिज्ञा की थी वह खण्डित हो जाती है। किञ्च सदैव अवलानां कामातुरतया इह जन्मन्यपि व्यभिचारोपलम्भात् अनादौ काले ताः कदा किं कुर्वन्तीति ब्रह्मणापि ज्ञातुमशक्यम् / तथा च व्यभिचारो हि प्रवादेन व्याप्तः इत्याद्ययुक्तम्, अत्यन्तप्रच्छन्नकामुकानां प्रवादाभावेऽपि व्यभिचारसम्भवतः तस्य तेन व्याप्त्यनुत्पत्तेः / अतः पित्रोरविप्लतत्त्वस्य कुतश्चिदप्रसिद्धेः न तदुपदेशो ब्राह्मण्यप्रत्यक्षताप्रादुर्भावे चक्षुषः सहकारित्वं प्रतिपद्यते।। 3. अबलायें सदा ही कामातुर होती हैं। इस जन्ममें ही उनका व्यभिचार देखा जाता है, इसलिए अनादि कालके भीतर वे कब क्या करती हैं यह जानना ब्रह्माके लिए भी अशक्य है / यदि कहो कि व्यभिचारिणीकी
SR No.004410
Book TitleVarn Jati aur Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1989
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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