________________ कुल-मीमांसा हुआ / / 286 / / यह राक्षसवंशकी उत्पत्ति कही। अब इस वंशमें उत्पन्न हुए प्रधान पुरुषोंका कथन करते हैं / / 5-87 / / -पद्मचरित कुलानामिति सर्वेषां श्रावकाणां कुलं स्तुतम् / आचारेण हि तत्पूतं सुगत्यर्जनतत्परम् // 20-140 // तथा वानरचिन्हेन छत्रादिविनिवेशिना। विद्याधरा गता ख्याति वानरा इति विष्टपे // 6-215 // सब कुलोंमें श्रावकोंका कुल स्तुत्य होता है, क्योंकि वह अपने आचार के कारण पवित्र है और सुगतिका कारण है / / 20-140 / / उसी प्रकार छत्रादिमें अङ्कित वानरचिह्न के कारण विद्याधर लोक वानर इस ख्यातिको प्राप्त हुअा // 6-215 / / -पद्मचरित गङ्गासिन्धुमहानद्योमध्ये दक्षिणभारते / चतुर्दश यथोत्पन्नाः क्रमेण कुलकारिणः // 7-124 // आदित्यवंशसंभूताः क्रमेण पृथुकीर्तयः / सुते न्यस्तभराः प्राप्तस्तपसा परिनिर्वृत्तिम् // 13-12 // योऽसौ बाहुबली तस्माजातः सोमयशाः सुतः / सोमवंशस्य कर्ताऽसौ तस्य सूनुर्महाबलः // 13-16 // इच्वाकुः प्रथमप्रधानमुदगादादित्यवंशस्ततः। तस्मादेव च सोमवंश इति यस्त्वन्ये कुरुपादयः॥ पश्चात् श्रीवृषभादभूदृषिगणः श्रीवंश उच्चस्तराम् / इत्थं ते नृपखेचरान्वययुता वंशास्तवोक्ता मया // 13-33 // हरिरयं प्रभवः प्रथमोऽभवत्सुयशसो हरिवंशकुलोद्गतेः / जगति यस्य सुनामपरिग्रहाचरति भो हरिवंश इति श्रुतिः॥१५-५८।। उदियाय यदुस्तत्र हरिवंशोदयाचले / यादवप्रभवो व्यापी भूमौ भूपविभाकरः // 18-6 // 22