________________ 326 वर्ण, जाति और धर्म गोत्रमुच्चैश्च नीचैश्च तत्र यस्योदयात्कुले / पूजते जन्म तदुच्चैर्नीचर्नीचकुलेषु तत् // 58-276 // जो कहा जाता है उसे गोत्र कहते हैं / उसके उच्चगोत्र और नीचगोत्र ये दो भेद हैं // 58-218 // "जिसके उदयसे उच्च और नीच कुलमें जन्म होता है उसे क्रमसे उच्चगोत्र और नीचगोत्र कहते हैं // 58-276 // - -हरिवंशपुराण उच्चच्च उच्च तह उच्चणीच णीचुच्च णीच णीचं च। जस्सोदयेण भावो णीचुच्चविवजिदो तस्स // जिस गोत्रकर्मके उदयसे जीव उच्चोच्च, उच्च, उच्चनीच, नीचोच्च, नीच और नीचनीच भावको प्राप्त होता है उस गोत्रकर्मके क्षयसे वह उन भावोंसे रहित होता है। , -उद्धत धवला कुदो ? उच्चाणीचागोदाणं जीवपज्जायत्तणेण दंसणादो / शंका-गोत्रकर्म आत्मामें निबद्ध क्यों है ? समाधान-क्योंकि उच्चगोत्र और नीचगोत्र ये जीवकी पर्याय रूपसे देखे जाते हैं। -~-निबन्ध अनुयोगद्वार, सूत्र 7, धवला जस्स कम्मस्स उदएण उच्चागोदं होदि तमुच्चागोदं / गोत्रं कुलं वंशः सन्तानमित्येकोऽर्थः / जस्स कम्मस्स उदएण जीवाणं णीचागोदं होदि तं णीचागोदं णाम। ___जिस कर्मके उदयसे उच्चगोत्र होता है वह उच्चगोत्र है / गोत्र, कुल, वंश और सन्तान ये एकार्थवाची शब्द हैं। जिस कर्मके उदयसे जीवोंके नीचगोत्र होता है वह नीचगोत्र है। -जीवस्थान प्रथम चूलिका 135 सूत्र धवला