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________________ 324 वर्ण, जाति और धर्म गोत्र-मीमांसा गोदस्स कम्मस्स दुबे पयडीओ-उच्चागोदं चेव णीचांगोदं चैव // 45 // गोत्र कर्मकी दो प्रकृतियाँ हैं--उच्चगोत्र और नोचगोत्र // 45 // -जीवस्थान प्रथम चूलिका गोदस्स कम्मस्स दुबे पयडीओ-उच्चागोदं चेव णीचागोदं चेव / एवडियाओ पयडीओ // 135 // . गोत्र कर्म की दो प्रकृतियाँ हैं-उच्चगोत्र और नीचगोत्र / इतनी प्रकृतियाँ // 135 // -वर्गणाखण्ड प्रकृति अनुयोगद्वार विपाकदेसो गाम मदियावरणं जीवविपाका। चदुआउ० भवविपाका० / पंचसरीर-छम्संठाण-तिण्णिअंगो०-छस्संघड०-पंचवण्णदुगंध-पंचरस-अप०-अगुरु०-उप०-पर०-आदाउज्जो०-पत्तेय०-साधारथिराथिर-सुभासुभ-णिमिणं एदाओ पुग्गलविपाकाओ। चदुण्णं आणु० खेत्तविपाका० / सेसाणं मदियावरणभंगो।। विपाकदेशकी अपेक्षा मतिज्ञानावरण जीवविपाकी है / चार श्रायु भवविपाकी हैं / पाँच शरीर, छह संस्थान, तीन बाङ्गोपाङ्ग, छह संहनन, पाँच वर्ण, दो गन्ध, पाँच रस, आठ स्पर्श, अगुरुलघु, उपघात, परघात, आतप, उद्योत, प्रत्येक, साधारण, स्थिर, अस्थिर शुभ, अशुभ और निर्माण ये पुद्गलविपाकी प्रकृतियाँ हैं। चार आनुपूर्वी क्षेत्रविपाकी प्रकृतियाँ हैं / शेष प्रकृतियोंका भङ्ग मतिज्ञानावरणके समान है। -महाबन्ध, अनुभागप्ररूपणा प्र० पु० पृ० 186 गोदमप्पाणम्हि णिबद्धं // 7 // गोत्रकर्म आत्मामें निबद्ध है / अर्थात् गोत्रकर्मका विपाक जीवमें होता है // 7 // --निबन्धन अनुयोगद्वार
SR No.004410
Book TitleVarn Jati aur Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1989
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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