________________ 302 ___ वर्ण, जाति और धर्म मनुष्य मिथ्यादृष्टि, सासादनसन्यग्दृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि इन तीन गुणास्थानोंमें स्यात् पर्याप्त होते हैं और स्यात् अपर्याप्त होते हैं // 6 // सम्यग्मिथ्यादृष्टि, संयतासंयत और संयत गुणस्थानोंमें नियमसे पर्याप्त होते हैं / / 60 // इसी प्रकार मनुष्य पर्याप्तकोंके विषयमें जानना चाहिए // 1 // मनुष्यिनियोंमें मिथ्यादृष्टि और सासादनसम्यग्दृष्टि इन दो गुणस्थानोंमें वे स्यात् पर्याप्त होती हैं और स्यात् अपर्याप्त होती हैं // 12 // सम्यग्मिथ्यादृष्टि, असंयतसम्यग्दृष्टि, संयतासंयत और संयत गुणस्थानोंमें . नियमसे पर्याप्त होती हैं // 63 // . मणुस्सा तिवेदा मिच्छाइटिप्पहुडि जाव अणियट्टि त्ति // 108 // तेण परमवगदवेदा चेदि // 10 // मिथ्यादृष्टिगुणस्थानसे लेकर अनिवृत्तिकरण गुणस्थान तक मनुष्य तीन वेदवाले होते हैं // 108 // उसके बाद अपगतवेदवाले होते हैं // 10 // मणुस्सा अस्थि मिच्छाइट्टी सासणसम्माइट्ठी सम्मामिच्छाइट्ठी असंजदसम्माइट्ठी संजदासंजदा संजदा चेदि // 182 // एवमड्डाइजदीवसमुद्देजु // 163 // ___ मनुष्य मिथ्यादृष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि, सम्यग्मिथ्यादृष्टि, असंयतसम्यग्दृष्टि, संयतासंयत और संयत होते हैं // 162 // इसी प्रकार ढाई द्वीप और दो समुद्रोंमें जानना चाहिए / / 163 / / | ___ मणुसा असंजदसम्माइटि-संजदासंजद-संजदट्ठाणे अत्थि सम्माइट्ठी खइयसम्माइट्ठी वेदयसम्माइटो उवसम्माइट्ठी // 164 // एवं मणुसपजत्तमणुसिणीसु // 165 // __मनुष्य असंयतसम्यग्दृष्टि, संयतासंयत और संयतगुणस्थानोंमें सम्यग्दृष्टि, क्षायिकसम्यग्दृष्टि वेदकसम्यग्दृष्टि और उपसमसम्यग्दृष्टि होते हैं // 164 / / इसी प्रकार मनुष्य पर्याप्त और मनुष्यिनियोंमें जानना चाहिए // 165 // -जीवस्थान सत्प्ररूपणा