SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 204
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 202 ___ वर्ण, जाति और धर्म द्वारा प्राचार्य जिनसेन यह सूचित करते हैं कि एक प्रतिमावाले ब्राह्मणको भरत महाराजने एक सूत्रसे चिह्नित किया और दो प्रतिमावाले ब्राह्मणको दो सूत्रोंसे चिह्नित किया / इसी प्रकार प्रतिमा क्रमसे एक एक सूत्र बढ़ाते हुए अन्तमें ग्यारह प्रतिमावाले ब्राह्मणको ग्यारह सूत्रोंसे चिह्नत किया / उपनीति क्रियाका कथन करने के प्रसङ्गसे उन्होंने भरत महाराजके मुखसे ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य ये तीन वर्णवाले मनुष्य उपनीति आदि संस्कारों के अधिकारी हैं यह कहला कर यह भी सूचित किया है कि ब्राह्मण : वर्णकी स्थापना करते समय भरत महाराजने क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र इन तीन वर्षों मेंसे व्रती श्रावकोंको चुन कर ब्राह्मण वर्णकी स्थापना की थी। किन्तु उन्हें उपदेश देते समय उन्होंने इस व्यवस्थाको समाप्त कर जन्मसे वर्णव्यवस्था स्वीकार कर ली / तदनुसार उन्होंने उपनीतिसंस्कारके आश्रयसे भरत महाराजके मुखसे ये नियम कहलवाथे कि प्रथम ही जिनालयमें जाकर जिसने अहितन्तदेवकी पूजा की है ऐसे उस बालकको व्रत देकर उसका मौंजीबन्धन करना चाहिए / जो चोटी रखाये हुए है, जिसकी सफेद धोती और सफेद दुपट्टा है, जो वेष और विकारोंसे रहित है तथा जो व्रतोंके चिन्हस्वरूप यज्ञपवीत सूत्रको धारण कर रहा है ऐसा वह बालक उस समय ब्रह्मचारी कहा गया है। उस समय उसका चारित्रोचित अन्य नाम भी रखा जा सकता है / उस समय बड़े वैभववाले राजपुत्रको छोड़कर सबको भिक्षावृत्तिसे निर्वाह करना चाहिए और राजपुत्रको भी नियोगवश अन्तःपुरमें जाकर किसी पात्रमें भिक्षा लेनी चाहिए। भिक्षामें जो कुछ प्राप्त हो उसका कुछ हिस्सा देवको अर्पण कर बाकी बचे हुए योग्य अन्नका स्वयं भोजन करना चाहिए।' इसके कितने लरका यज्ञोपवीत होता है इसका स्पष्टीकरण करते हुए उन्होंने व्रतचर्या संस्कारका निरूपण करते हुए कहा है कि उसका सात लरका गुथा हुआ यज्ञोपवीत होता है। 1. पर्व 38, श्लो० 105-108 / 2. पर्व 38, श्लो० 112 /
SR No.004410
Book TitleVarn Jati aur Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1989
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy