________________ 188 वर्ण, जाति और धर्म और अर्थके अर्जन करनेके कुछ सामाजिक नियम हैं / यदि कोई गृहस्थ उन नियमोंको पालन करते हुए जिस प्रकार उस उस अणुव्रतको धारण करनेवाला नहीं हो जाता उसी प्रकार सामाजिक विधिके अनुसार केवल विवाह करने तथा उचित रीतिसे उसका पालन करनेमात्रसे कोई ब्रह्मचर्याणुव्रती नहीं हो जाता / पुराणोंमें खदिरभीलकी कथा आई है / अन्य मनुष्यों को मुनिवन्दनाके लिए जाते हुए देख कर वह भी उनके साथ मुनिवन्दना के लिए जाता है / मुनिद्वारा सबको धर्मोपदेश देने के बाद किसीने कोई व्रत लिया और किसीने कोई व्रत लिया। यह देख कर उसकी भी इच्छा व्रत लेनेकी होती है। वचनालाप द्वारा यह जान लेने पर कि इसने अपने जीवनमें काक पक्षोका वध कभी नहीं किया है, मुनिमहाराजने उसे जीवनपर्यन्तके लिए काक पक्षीके वध न करनेका ही नियम दिया / इस उदाहरणसे स्पष्ट है कि जब तक किसी अपेक्षासे संयमको पुष्ट करनेवाली कोई विधि मोक्षमार्गके अभिप्रायसे नहीं स्वीकार की जाती तब तक वह धर्मका अङ्ग नहीं बन सकती। यही कारण है कि किसी भी प्राचार्यने विवाहको धार्मिक अनुष्ठानमें परिगणित नहीं किया है। इतना ही नहीं, व्रती श्रावकका 'स्व' का किया गया विवाह भी वैसे ही धार्मिक अनुष्ठान नहीं माना जायगा जैसे उसका धनका अर्जन करना या अणुव्रतीकी मर्यादाके भीतर असत्य बोलना धार्मिक अनुष्ठान नहीं माना जा सकता। इस प्रकार विवाह एक सामाजिक प्रथा है यह ज्ञात हो जाने पर इस बातका विचार करना आवश्यक है कि समाजमें केवल सवर्ण विवाह ही मान्य रहे हैं या असवर्ण विवाहोंको भी वही मान्यता मिली है जो सवर्ण विबाहोंको मिलती आई है। हरिवंशपुराणमें कन्याका विवाह किसके साथ हो ऐसा ही एक प्रश्न वसुदेवका स्वयंवर विधिसे रोहिणीके साथ विवाह होनेके प्रसङ्गसे उठाया गया है। वहाँ बतलाया है कि जब गायकके वेषमें उपस्थित वसुदेवके गलेमें रोहिणीने वरमाला डाल दी तब कुलीनता और अकुलीनताको लेकर