________________ 172 वर्ण, जाति और धर्म हो जायगी। इसते विदित होता है कि ब्राह्मण आदि जातियाँ अनादि. नहीं हैं। ___2. जिस प्रकार गायके साथ अश्वका संयोग होकर सन्तानकी उत्पत्ति नहीं होती, या वटके बीजसे आमकी उत्पत्ति नहीं होती उसी प्रकार ब्राह्मणी के साथ शूद्रका संयोग होकर सन्तान उत्पत्ति नहीं होनी चाहिए। किन्तु ब्राह्मणीसे शूद्रका संयोग होकर सन्तानकी उत्पत्ति देखी जाती है। इससे भी मालूम पड़ता है कि ब्राह्मण आदि जातियाँ अनादि नहीं हैं। .. 3. ब्राह्मण आदि जातियोंको अनादि माननेपर किसी ब्राह्मणीके वेश्या के घरमें प्रवेश करनेपर उसकी निन्दा नहीं होनी चाहिए, क्योंकि इतनेमात्रसे उसकी जाति खण्डित नहीं हो सकती / परन्तु लोकमें किसी ब्राह्मणी के वेश्या हो जानेपर उसे जातिच्युति मान लिया जाता है। इससे भी विदित होता है कि ब्राह्मण आदि जातियाँ अनादि नहीं हैं। 4. ब्राह्मण आदि जातियोंको अनादि माननेपर उनके यज्ञोपवीत आदि संस्कार नहीं करने चाहिए और न इस कारण उन्हें द्विजन्मा हो कहना चाहिए / किन्तु हम देखते हैं कि यज्ञोपवीत श्रादि संस्कार होकर ही उन्हें द्विज संज्ञा प्राप्त होती है। इससे भी मालूम पड़ता है कि ब्राह्मण आदि जातियाँ अनादि नहीं हैं। 5. प्रश्न यह है कि ब्राह्मणजाति किसका धर्म है ? जीवका स्वाभाविक धर्म तो हो नहीं सकता, क्योंकि सिद्धीमें इस प्रकारका भेद नहीं देखा जाता / कर्मके उदयसे उत्पन्न हुआ धर्म भी नहीं हो सकता, क्योंकि कर्मों में भी ब्राह्मणजाति कर्म आदि भेद नहीं देखे जाते। आचार्य जिनसेनने भी इस तथ्यको स्वीकार किया है / वे कहते हैं कि जाति नामकर्मके उदयसे उत्पन्न हुई मनुष्यजाति एक ही है / इसलिए यह जीवका धर्म तो है नहीं। शरीर . का धर्म है यह कहना भी ठीक नहीं है, क्योंकि मनुष्योंका शरीर औदारिकशरीर नामकर्मके उदयसे बनता है। परन्तु औदारिकशरीर नामकर्ममें ये