________________ वर्ण, जाति और धर्म . है यह स्वीकार करके भी जन्मसे चार वर्गोंको मान कर जातिव्यवस्थाको प्रथम दिया गया है / वहाँ यह स्पष्ट शब्दोंमें कहा गया है कि जातिसंस्कार का मूल कारण तप और श्रुत है / किन्तु तपश्चरण और शास्त्राभ्याससे जिसका संस्कार नहीं हुआ है वह जातिमात्रसे द्विज है / संस्कार तो शूद्रका भी किया जा सकता है ऐसी शंका होने पर उसका परिहार करते हुए वहाँ पुनः कहा गया है कि हमें ऐसा द्विज इष्ट है जो एक तो ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य कुलमें ही उत्पन्न हुआ हो। दूसरे जिसका क्रियाओं के द्वारा संस्कार किया गया हो। इसलिए वहाँ पर गर्भान्वय आदि जितनी भी क्रियाएँ बतलाई गई है वे सब द्विजातिको लक्ष्य कर ही कही गई हैं (पर्व 38, श्लो० 45 से)। इतना अवश्य है कि मनुस्मृतिके समान वहाँ नाना जातियों और नाना उपजातियोंकी उत्पत्तिकी मीमांसा नहीं की गई है। मात्र एक तो विवाह के विषयमें मनुस्मृतिकी उस व्यवस्थाको स्वीकार कर लिया गया है जिसके आधारसे ब्राह्मणकी चारों जातियोंकी भार्याएँ, क्षत्रियकी तीन जातिकी भार्याऐं, वैश्यकी दो जातिकी भार्याऐं और शूद्रकी एकमात्र शूद्रा भार्या हो सकती है। दूसरे मनुस्मृतिके समान वहाँ भी जातिव्यवस्थाका निर्वाह योग्य रीतिसे हो रहा है इस पर समुचित निगाह रखनेका भार राजाके ऊपर छोड़ दिया गया है / वहां यह स्पष्ट शब्दोंमें कहा गया है कि जो इस वृत्तिको छोड़ कर अन्य वृत्तिका आश्रय करता है उस पर राजाको नियन्त्रण स्थापित करना चाहिए, अन्यथा समस्त प्रजा वर्णसंकर हो जायगी। ___ आदि पुराणमें कन्वय क्रियाओंका निर्देश करते हुए सर्व प्रथम सजाति क्रिया दी है और उसका लक्षण करते हुए कहा है कि दीक्षाके योग्य कुलमें जन्म होना यही सजाति है जिसकी सिद्धि विशुद्ध कुल और विशुद्ध जातिके आश्रयसे होती है / तात्पर्य यह है कि एक ओर तो पिताके अन्वयको शुद्धिसे युक्त कुल होना चाहिए और दूसरी ओर माताके अन्वयकी शुद्धिसे युक्त जाति होनी चाहिए / जहाँ इन दोनोंका योग मिलने पर सन्तति उत्पन्न होती है बह सन्तति सजातिसम्पन्न मानी जाती है। सजाति दो प्रकारकी होती