________________ जातिमीमांसा 157 उसकी निन्दा ही की गई है। वहाँ कौन किस जातिकी कन्याके साथ विवाह करे. इसके लिए सामान्य नियम यह आया है कि शूद्रकी एकमात्र शूद्रा स्त्री होती है, वैश्यकी शूद्रा और वैश्या भार्या होती हैं, क्षत्रियकी शूद्रा, वैश्या और क्षत्रिया भार्या होती हैं तथा ब्राह्मणकी चारों वर्गों को भार्याएँ हो सकती है। इस नियमके अनुसार वहाँ सवर्ण विवाहको धर्म विवाह और असवर्ण विवाहको कामविवाह संज्ञा दी गई है। लोकमें एक एक वर्णके भीतर जो नाना जातियाँ और उपजातियाँ देखी जाती हैं उनका मनुस्मृतिके अनुसार एक आधार तो सवर्ण और असवर्ण विवाह है और दूसरा आधार है उनके अलग-अलग अवान्तर कर्म / किसका क्या कर्म हो इस विषयमें भी मनुस्मृतिकी यह व्यवस्था है कि जिसके कुटुम्बमें आनुवंशिक जो कर्म होता आ रहा है उसकी सन्तानको वही कर्म करनेका अधिकार है। सब अपने-अपने कर्मको करते हुए आश्रमधर्मका योग्य रीतिसे पालन करते हैं इस पर निगाह रखनेका मुख्य कार्य राजाका है, क्योंकि ब्रह्माने उसकी सृष्टि इसी अभिप्रायसे की है। महापुराणमें जातिव्यवस्थाके नियम__ यह मनुस्मृति के कथनका सार है। इसके प्रकाशमें महापुराणमें जातिव्यवस्थाके जो नियम दिये हैं उन पर विचार कीजिए / यह तो हम आगे चल कर बतलानेवाले हैं कि जैनसाहित्य जातिव्यस्थाको स्वीकार नहीं करता। उसमें पद पद पर उसकी निन्दा ही की गई है। सर्व प्रथम यदि कोई ग्रन्थ है तो वह महापुराण ही है जिसमें जातिव्यवस्थाको प्रश्रय मिला है। वहाँ मनुष्यजाति नामकर्मके उदयसे उत्पन्न हुई मनुष्यजाति एक है। उसके ब्राह्मण आदि चार भागों में विभक्त होने का एकमात्र कारण आजीविका . : 1. अ० 3 श्लो० 15 / 2. अ० 3 श्लो० 13 / 3, अ०७ श्लो० 35 / /