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________________ सीमायें . साइटिका अथवा रीढ़ के निचले भाग के आसपास किसी प्रकार की गड़बड़ी से पीड़ित व्यक्तियों को यह आसन नहीं करना चाहिए। लाभ आसन में दक्षता प्राप्त हो जाने पर अभ्यासी अपने शरीर को लम्बे समय तक पूर्णतः स्थिर रख सकता है, क्योंकि शरीर और मस्तिष्क आपस में सम्बन्धित हैं और एक-दूसरे को नियंत्रित करते हैं। शरीर की स्थिरता से मन में स्थिरता आती है / सफल ध्यान के लिए स्थिस्ता पहली सीढी है। यह आसन प्राण-शक्ति को मूलाधार चक्र (गुदा और मूत्रेन्द्रिय के मध्य) से सहस्रार चक्र (सिर के ऊपरी भाग में) तक उचित रूप से प्रवाहित करता है। पद्मासन रीढ़ के निचले भाग एवं आमाशय में फैले स्नायु-जाल को अतिरिक्त खून पहुँचाकर सामान्य करता है। (पैरों में खून का प्रवाह कम हो जाता है और इस प्रकार आमाशय को खून की अतिरिक्त आपूर्ति मिलती है)। शारीरिक, स्नायविक एवं भावनात्मक समस्याओं से छुटकारा दिलाने में / पद्मासन सहायक हैं। इसके अभ्यास से जठराग्नि तीव्र होती है और भूख बढ़ती है। 63
SR No.004406
Book TitleAasan Pranayam Mudra Bandh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyanand Sarasvati
PublisherBihar Yog Vidyalay
Publication Year2004
Total Pages440
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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