________________ ध्यान के आसन ध्यान के आसनों का मुख्य उद्देश्य है कि अभ्यासी लम्बे समय तक एक ही स्थिति में बैठ सके / ध्यान की उच्च अवस्था में अभ्यासी को बिना हिले - डुले और बिना किसी प्रकार की शारीरिक पीड़ा के कुछ घण्टों तक एक ही स्थिति में बैठना पड़ता है / वास्तव में सफल ध्यान तभी लग सकेगा जब शरीर स्थिर और शान्त रहे / इस समूह के आसन ऐसे हैं जिनके अभ्यास के बाद बिना किसी तनाव और कष्ट के लम्बे समय तक उनमें स्थिर रहा जा सकता है | यद्यपि अन्य आसन भी लम्बे समय तक किये जा सकते हैं लेकिन या तो उनमें शरीर को कष्ट होने लगता है या फिर उनको बनाये रखने में निरन्तर ख्याल रखना पड़ता है / एक अन्य कारण यह भी है कि गहरे ध्यान के लिए रीढ़ की हड्डी का सीधा रहना आवश्यक है और आसनों में से कुछ आसन ही ऐसे हैं जो इस शर्त को पूरी करते हों। इसके अतिरिक्त ध्यान की उच्च अवस्थाओं में शरीर की मांसपेशियों पर अभ्यासी का नियंत्रण नहीं रहता / अतः ध्यान के आसनों को ऐसा होना चाहिए जिनमें बिना किसी प्रयास के शरीर स्वतः एक स्थिर स्थिति में रह सके। - प्रश्न उठ सकता है कि शवासन. में ध्यान क्यों न किया जाये क्योंकि इसमें सभी आवश्यक शर्ते पूरी होती हैं / इसका उत्तर बड़ा सरल है | ध्यान में यह बहुत आवश्यक है कि अभ्यासी को नींद न आये और ध्यान से पूर्व तन और मन को शिथिल करने वाली विधियों का अभ्यास करते हुए शवासन में नींद न आये, यह लगभग असम्भव है। ध्यान का अनुभव प्राप्त करने के प्रारम्भिक प्रयत्नों के लिए नये अभ्यासी सुखासन लगा सकते हैं क्योंकि यह बड़ा सरल है और इसके लिए शरीर का अधिक लचीला होना आवश्यक नहीं है। वैसे उन्हें ध्यान से पूर्व किये जाने वाले अभ्यासों (पूर्व अध्याय में जिनका वर्णन किया जा चुका है) को पूरी ईमानदारी से प्रारम्भ कर देना चाहिए ताकि वे पद्मासन और शीर्षासन जैसे कठिन लेकिन ध्यान के प्रमुख आसनों के लिए अपने शरीर को धीरे - धीरे तैयार कर सकें।