________________ ऋषिकेश के स्वामी शिवानन्द जी महाराज आसन और ध्यान के सम्बन्ध में कहते हैं "बिना हिले-डुले एक बार में ध्यान के किसी आसन में पूरे 3 घण्टे बैठने का आपको अभ्यास होना चाहिए | तभी आपको उस आसन पर पूर्ण अधिकार (आसन-सिद्धि) प्राप्त होगा। फिर आप प्राणायाम और ध्यान की उच्च अवस्थाओं तक जा सकते हैं / आसन में स्थिरता प्राप्त किये बिना आप ध्यान में अच्छी प्रगति नहीं कर सकते / आसन में आप जितने ही स्थिर होंगे, उतना ही अधिक अपने को एकाग्रचित्त एवं अपने मस्तिष्क को एक बिन्दु पर केन्द्रित होने के योग्य बना सकेंगे; अपने अन्दर अनन्त शान्ति और आत्मानन्द का अनुभव करेंगे। जब आप आसन में बैठे तो सोचिये - "मैं चट्टान की तरह दृढ़ हूँ। मुझे कोई हिला नहीं सकता।" कई बार अपने मस्तिष्क को यह सुझाव दीजिये / तब आसन में जल्दी स्थिरता प्राप्त होगी / जब आप ध्यान में बैठे तो बिल्कुल एक जीवित मूर्ति बन जायें, तभी आपके आसन में स्थिरता आयेगी। एक वर्ष के नियमित अभ्यास के बाद आपको सफलता मिलेगी और आप एक बार में 3 घण्टे के लिए बैठ सकेंगे। प्रारम्भ में बहुत से लोगों को किसी एक आसन में लम्बे समय तक बैठने में कठिनाई होगी। फिर भी उन्हें निराश नहीं होना चाहिए, बल्कि ध्यान से पूर्व किये जाने वाले अभ्यासों को लगन और मेहनत से करना चाहिए | आगे चलकर आश्चर्य होगा, जब वे. पायेंगे कि उनसे ध्यान के आसन भी लगने लगे हैं। इसके बाद वे इन आसनों में थोड़े समय के लिए बैठ भी सकेंगे। इस अवस्था में उन्हें चाहिए कि वे प्रतिदिन आधा मिनट आसन की अवधि बढ़ाते जायें / कड़े शरीर वाले भी अन्त में पद्मासन में बैठ सकते हैं, यदि वे नियमित रूप से ध्यान से पूर्व किये जाने वाले अभ्यासों को लगन से करते रहें। पद्मासन में बैठ सकने की योग्यता केवल शरीर की लोच पर ही निर्भर नहीं है बल्कि मस्तिष्क की अवस्था पर भी है। दूसरे शब्दों में यदि अभ्यासी के मन में विश्वास है कि अन्त में वह पद्मासन लगाने में सफल हो जायेगा तो यह निश्चित समझिये कि वह ऐसा कर सकेगा। मस्तिष्क और शरीर का ऐसा ही घनिष्ठ सम्बन्ध है।