________________ लिए उनसे संबंधित आसन एवं बंधों के अभ्यास कीजिये। स्नायु-विकार : नियमित अभ्यास अनिवार्य है / पवनमुक्तासन - अभ्यास 1 से 16 कीजिये। स्मृति : एकाग्रता के सभी अभ्यास / संधिः सूर्य नमस्कार तथा पवनमुक्तासन - अभ्यास 1 से 16 / साइटिका : पवनमुक्तासन - अभ्यास 1 से 5, शिथिलीकरण के सभी अभ्यास, मत्स्य -क्रीड़ासन, मकरासन, समस्त पीछे झुकने के अभ्यास। . सामने झुकने के अभ्यास मत कीजिये। स्लिप डिस्क : सामने झुकने के अभ्यास वर्जित हैं / अद्वासन में शिथिलीकरण, ज्येष्टिकासन, मकरासन (दीर्घकालीन), सोते समय एवं जाग्रतावस्था में यदि रोगी की स्थिति गंभीर हो तो धीरे-धीरे भुजंगासन (विशेष प्रकारांतर स्फिक्स), मेरु वक्रासन व भू नमनासन लाभप्रद हैं। हाइड्रोसिल : रोगी की क्षमतानुसार धीरे - धीरे सूर्य नमस्कार का अभ्यास, अधिकतम अवधि तक वज्रासन, सभी आसन जो सिर के बल किये जाते हैं, गरुड़ासन, वातायनासन, ब्रह्मचर्यासन / मूल - बंध, अश्विनी मुद्रा, विपरीतकरणी मुद्रा, वज्रोली। हृदय में दर्द : शवासन, उज्जायी प्राणायाम, योग-निद्रा, अजपाजप, अंतर्मोन, शिथिलीकरण की कोई प्रक्रिया। 'हे' फीवर : (नासिका एवं नेत्रों में सूजन - एक प्रकार को पराग स्पर्श - दोष). . सिंहासन, प्राणायाम (भस्त्रिका, कपालभाति), कुंजल, नेति से निवारण होता हाथ : पवनमुक्तासन - अभ्यास 11, 12, 13 एवं हाथ के सभी व्यायाम / हृदय : 'रक्तचाप' देखिये। सभी योगाभ्यास से लाभ की प्राप्ति होती है। हाथी पाँव : जीवाणुओं से बचाव के लिए शरीर को शक्ति प्रदान करने के लिए सभी योगाभ्यास लाभप्रद हैं। आत्मविश्वास से इन अभ्यासों में वृद्धि कीजिये तथा स्वतः उपचार के योग्य बनिये / क्षय रोग : ‘यकृत' के अंतर्गत वर्णित आसन लाभप्रद हैं परन्तु योग शिक्षक से पूर्व निर्देश अवश्य प्राप्त कीजिये / 408