________________ 'नियमानुसार होता है। किसी भी समय नथुने से बहने वाले श्वास-प्रवाह का अनुभव करते हुए यह ज्ञात किया जा सकता है कि उस विशेष समय में किस नाड़ी में प्रवाह है। यदि बायें में प्रवाह अधिक हो तो समझिये कि इड़ा तीव्र चल रही है / यदि दाहिने नथुने में वायु-प्रवाह अधिक हो तो स्पष्टतः पिंगला नाड़ी में प्रवाह का संकेत है और यदि दोनों नासिका -छिद्रों में समान वायुप्रवाह है तो यह सुषुम्ना नाड़ी-प्रवाह के लक्षण हैं / अवलोकन से प्राप्त होता है कि एक नथुने में दूसरे की अपेक्षा वायु -प्रवाह अधिक होता है। दाहिने नथुने के प्रवाह - काल में प्राण शक्ति अधिक क्रियाशील होती है। इससे शारीरिक कार्य, पाचन आदि में सहायता मिलती है। इस अवधि में मन / बहिर्मुखी रहता है एवं शरीर में अधिक ताप उत्पन्न होता है। यदि बायीं नासिका में अधिक प्रवाह हो या इड़ा नाड़ी चल रही हो तो मानसिक शक्तियों की प्रधानता होती है। मन अंतर्मुखी होता है / इस अवधि में चिंतन, चित्तएकाग्रता आदि कार्य संपादित करने चाहिए / इड़ा नाड़ी का प्रवाह अधिकतर निद्रा - अवस्था में होता है / यदि रात्रि में पिंगला में प्रवाह हो तो व्यक्ति को असुविधा प्रतीत होती है तथा कठिनाई से नींद आती है। इसी भाँति यदि भोजन के समय इड़ा नाड़ी में प्रवाह हो तो पाचन क्रिया ठीक नहीं होती तथा अपचन हो जाता है। हमारी समस्त क्रियायें इन्हीं नाड़ी - प्रवाहों के परिणामस्वरूप होती हैं / इच्छा शक्ति एवं पादादिरासन आदि यौगिक अभ्यासों के द्वारा इच्छानुसार स्वर -प्रवाह में परिवर्तन किया जा सकता है। उदाहरणार्थ- किसी व्यक्ति को यदि कार्य करना है और उसे नींद की अनभूति हो रही है तो वह उपरोक्त विधि से स्वर प्रवाह पिंगला में करते हुए कार्य हेतु अनिवार्य शक्ति प्राप्त कर सकता है। ___स्वर योग नामक विज्ञान में विस्तृत रूप में परिवर्तित नाड़ी-प्रवाह का वर्णन किया जाता है। हठयोग का भी प्रथम उद्देश्य इड़ा और पिंगला के प्राण - प्रवाह के मध्य संतुलन लाना है (ह-सूर्य; ठ- चन्द्र)। इस कार्य के लिए षट्कर्मों द्वारा शरीर की शुद्धिकरण - क्रिया की जाती है। सभी व्यक्तियों को इन दोनों प्रवाहों में संतुलन बनाये रखना आवश्यक है ताकि व्यक्ति बहुत अधिक मानसिक रूप से एकाग्र न हो और न बहुत अधिक शारीरिक कार्य में ही लगा रहे या भौतिक कार्य में ही उसकी चेतना बनी रहे / दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि स्थूलमान से चौबीस घण्टों में लगभग बारह घण्टे बायें स्वर - प्रवाह की प्रमुखता होनी चाहिए तथा शेष बारह घण्टे दाहिने स्वर में प्रवाह की प्रधानता होनी चाहिए। 358