________________ (bronchitis) व अत्यधिक तनाव की स्थिति में इस पर ध्यान करना चाहिए। विशेषतः आसनों या अन्य यौगिक अभ्यासों के समय इस चक्र पर चित्त को एकाग्र करना चाहिए। हृदय प्रदेश में एक अंधेरे कमरे या गुफा की कल्पना करते हुए इस चक्र पर ध्यान करना चाहिए। इसे हृदयकक्ष कहते हैं और इस खाली प्रदेश की रिक्तता-पूर्ति श्वास क्रिया के प्रसारण - संकुचन तथा धड़कन की ध्वनियों से की जाती है। अभ्यासी को दीपक की जलती हुई एक छोटी सी लौ देखने की कोशिश करनी चाहिए / वायुरहित स्थान में लौ की स्थिरता की कल्पना करनी चाहिए / यह प्रत्येक व्यक्ति में निहित जीवात्मा का संकेत है जिसे सांसारिक बातें अशांत नहीं कर सकतीं। 5. विशुद्रि चक्र विशुद्धि का शब्दार्थ है- 'शुद्ध करना' / विशुद्धि चक्र शुद्धिकरण का केन्द्र है / इसका सांकेतिक चिह्न सोलह पंखुड़ियों वाला कमल पुष्प है, कमल का रंग जामुनी मिश्रित धुएँ का रंग है / दलों पर संस्कृत के वर्ण हैं - 'अं' 'ओ' 'ई' 'ई' 'उ' 'ऊ' '' '' 'लूं' 'लू' 'एं' 'ऐं' 'ओं' 'औं' 'अं' 'अंः'। . पद्म के मध्य श्वेत वृत्त है / बीज मंत्र 'हं' है / इसका वाहन शुद्ध श्वेत गज है. जो आकाश का सांकेतिक चिह्न है / इष्टदेव 'अर्द्धनारीश्वर' हैं (अर्द्ध शरीर शिव या पुरुष रूप एवं अर्द्ध शरीर पार्वती या नाड़ी रूप।) इस चक्र की देवी 'साकिनी' हैं जिनका अधिकार अस्थि तत्व पर है। . विशुद्धि चक्र कंठ नलिका, चुल्लिका एवं उपचुल्लिका ग्रंथि प्रदेश अर्थात स्वर-कोष्ठ को प्रभावित करता है। इस प्रदेश के शरीरगत दोषों का * 'निवारणं इस चक्र पर चित्त की गहन एकाग्रता द्वारा किया जा सकता है। ग्रीवा का यह केन्द्र वह स्थान है जहाँ दिव्य रस अमृत का पान किया जा सकता है / यह अमृत वह स्वादिष्ट मीठा रस है जिसकी उत्पत्ति ललना चक्र द्वारा होती है। ललना चक्र ग्रीवा के पृष्ठ प्रदेश के समीप स्थित है। अमृत अमरत्व प्रदान करने वाला रस है। खेचरी मुद्रा जैसे उच्च यौगिक अभ्यासों द्वारा इस रस की ग्रंथि को क्रियाशील बनाया जा सकता है / इस विशेष रस का पान कर योगी इच्छानुसार कितनी भी अवधि तक बिना अन्न-जल ग्रहण 353