________________ किये जीवित रह सकता है। ललना चक्र पर अधिकार प्राप्त कर भारत के अनेक योगी भूमिगत समाधि का प्रदर्शन करते हैं। उनका शरीर भूमि में दफना दिया जाता है। कई दिनों के बाद भी वे जीवित अवस्था में ही बाहर आते हैं। ललना चक्र को उत्प्रेरित करने वाला कोई भी अभ्यास योग्य गुरु के निर्देशन में ही करना चाहिए, अन्यथा कुछ संकट उत्पन्न हो सकता है / इस प्रकार के उच्च अभ्यास के लिए साधक की दशा उपयुक्त न होने पर कड़वे व विषैले रस की उत्पत्ति होती है। . व्यक्ति को इस चक्र पर ध्यान इस अनुभव के साथ करना चाहिए कि. अमृत की शीतल मीठी बूंदें उस पर गिर रही हैं और विषैले तत्वों का नाश कर आनन्दानुभूति प्रदान कर रही हैं। 6. आज्ञा चक्र इस चक्र को 'तृतीय नेत्र', ज्ञान चक्षु, त्रिकुटी, त्रिवेणी, भ्रूमध्य, गुरुचक्र या शिवनेत्र भी कहा जाता है। ध्यान की ऊँची अवस्था में शिष्यगण इसी चक्र के माध्यम से गुरु की आज्ञा और निर्देशों को ग्रहण करते हैं। दिव्य उच्च चेतना का आदेश भी इसी से ग्रहण किया जाता है / इसका लाक्षणिक चिह्न हल्के भूरे या श्वेत रंग का द्विदलीय पद्म है / दलों पर 'हं', 'क्ष' लिखा होता है / ये प्राणशक्ति के ऋणात्मक एवं धनात्मक प्रवाह का प्रतिनिधित्व करते हैं। दोनों प्रवाह इसी बिंदु की ओर हैं / पदम के मध्य में बीज मंत्र 'ॐ' है। इष्ट देव परमशिव, अरूप चेतना है / इस चक्र की देवी 'हाकिनी' हैं जो इस चक्र के तत्व सूक्ष्म मन या मानस का नियंत्रण करती हैं। __ आज्ञा चक्र एक प्रसिद्ध केन्द्र है। ध्यान की अनेक क्रियाओं में इस पर ही ध्यान किया जाता है। सामान्यतः हम भूमध्य पर ही ध्यान करते हैं परन्तु इस चक्र का वास्तविक स्थान मस्तिष्क प्रदेश में है। भौतिक शरीर में इससे समानता रखने वाली रचना पीनियल (pineal) नामक गूढ़ अंतःस्रावी ग्रंथि है। औषधि क्षेत्र के वैज्ञानिकों ने अभी तक इसके जीवतत्व संबंधी कार्यों का पता नहीं लगाया है / इस केन्द्र की वास्तविक स्थिति का पता लगाना कठिन है। भ्रूमध्य केन्द्र इस चक्र को प्रेरित करने के लिए एक बटन का काम करता है। यह चक्र दृष्टि, नाड़ी, गंध, पिंड तथा बुद्धि, न्याय, तर्क जैसी मानसिक प्रक्रियाओं के लिए जिम्मेदार मस्तिष्क के अनुरूप भी है। मानव की प्रमुख 354