________________ सामान्यतः मनुष्यों में प्रतिघात करने की या चपलता की जो शक्ति होती है, . उससे कहीं अधिक तीव्र क्रियाशीलता के लिए मानव शरीर तत्पर रहता है / आलस, सुस्ती, निराशा, अपचन और मधुमेह आदि पाचन-संस्थान के दोषों से जो व्यक्ति पीड़ित हैं, उन्हें मणिपुर चक्र पर ध्यान इस अनुभूति के साथ करना चाहिए कि इस प्रदेश से ताप एवं शक्ति की उत्पत्ति हो रही है। कुछ मतानुसार (जैसे जैन, बौद्ध - धर्म) मणिपुर चक्र ही कुंडलिनी का स्थान है; अतः यह बहुत ही महत्वपूर्ण है / यह विचार इस दृष्टि से सत्य है कि रूपान्तरण के समय कुण्डलिनी मणिपुर चक्र से अधिक प्रकाशमान होती हुई जाती है। मणिपुर चक्र आत्मिक तथा भौतिक शरीर का प्राण केन्द्र है / यहाँ प्राण (ऊपर जाने वाली शक्ति) एवं अपान (नीचे आने वाली शक्ति) का संगम होता है जिसके परिणामस्वरूप 'ताप' की उत्पत्ति होती है और जो जीवन - रक्षा के लिए अनिवार्य है। 4. अनाहत चक्र अनाहत चक्र का शाब्दिक अर्थ है- 'आघातरहित' / सृष्टि की समस्त ध्वनियों की उत्पत्ति परस्पर दो वस्तुओं के आघात से ही होती है परन्तु भौतिक जगत् के परे जो दिव्य ध्वनि है, वही सभी ध्वनियों का स्रोत है। इसे 'अनहद् नाद' कहते हैं / हृदय केन्द्र वह स्थान है जहाँ से ये ध्वनियाँ उत्पन्न होती हैं। यह सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की धड़कन है। योगी इस आंतरिक, अस्तित्वहीन, अनन्त तरंग को ग्रहण कर सकते हैं। , इसका लाक्षणिक चिह्न 12 दलों वाला नीले रंग का कमल फूल है। दलों पर अंकित वर्ण ये हैं- 'कं' 'खं' 'गं' 'घ' 'हुँ' 'चं' 'छं' 'ज' 'झं' 'ज' 'टं' और 'ठं'। मध्य में षट्कोणाकति है जिसकी रचना दो मिले हुए त्रिभुजों से हुई है / यह यहूदियों के देवता डेविड के तारे के समान होता है / बीजमंत्र 'यं' है / वाहन शीघ्रगामी काले रंग का हिरण है / यह वायु तत्व का प्रतीक है। प्रमुख देव 'ईशा' हैं जो सभी में व्याप्त हैं। शरीर के चर्बीदार तत्व की देवी 'काकिनी' इसमें स्थित हैं। ___भौतिक स्तर पर स्वाभाविकतः अनाहत चक्र का संबंध हृदय एवं फेफड़ों से है / साथ ही रक्त - संस्थान एवं श्वसन से भी यह सम्बन्धित है / पांडु. रोग, धड़कन की बीमारी, क्षयरोग, श्वास की बीमारी, कास रोग 352