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________________ व्यवस्थित किया जा सकता है। सूक्ष्म स्तर पर स्वाधिष्ठान चक्र अचेतन मन का स्थान है / अचेतन मन एकत्रित चेतना है - संस्कारों को एकत्रित करने वाला कक्ष तथा भूतकाल की सूक्ष्म स्मृतियों को संग्रहीत करके रखने वाली चेतना / यह मनुष्य की ऐसी अति प्राचीन प्रवृत्तियों का केन्द्र है जिनकी जड़ें बहुत नीचे हैं। इस केन्द्र के शुद्धिकरण के पश्चात् मनुष्य पाशविक प्रवृत्तियों से ऊपर उठ जाता है। इस केन्द्र पर ध्यान करने के लिए साधक को एक विशाल गहरे समुद्र में. अंधेरी रात में, आकाश के नीचे अशान्त तूफानी लहरों का दृश्य सामने लाना चाहिए / समुद्री तरंगें हमारी चेतना के उतार-चढ़ाव एवं बहाव का प्रतिनिधित्व करती हैं। 3. मणिपुर चक्र ___मणिपुर का अर्थ स्पष्टतः मणि का नगर है / यह अग्नि का केन्द्र है, ताप का मध्य बिन्दु है, मणि की भाँति चमकदार है तथा चैतन्यता और शक्ति से दीप्तिमान है / मणिपुर चक्र का वर्णन दस दल वाले पीतवर्णीय पद्म के रूप में मिलता है / दलों पर ये अक्षर लिखे हुए हैं-'डं' 'ढं' 'णं' 'तं' 'थं' 'दं' 'धं' 'नं' 'पं' 'फं'। पद्म के अन्दर उल्टा त्रिभुज है जिसका रंग लाल है। बीज मंत्र 'रं' है। वाहन 'भेड़' है जो चमकदार परन्तु आक्रमण करने वाला या आघात पहुँचाने वाला चौपाया जानवर है / प्रमुख देवता सृष्टि के संहारकर्ता 'रुद्र' हैं। मांसल तत्त्वों को नियंत्रित करने वाली देवी 'लाकिनी' है। ... सूर्य क्षेत्र वह केन्द्र है जिसका संबंध प्रधानतः पाचन की प्राणमयी क्रिया तथा भोजन के शोषण से है। हमारे पेट में स्थित क्लोम, पित्ताशय आदि अन्य ग्रंथियों का कार्य वितरण के पूर्व भोजन की दाह - क्रिया के लिए पाचक द्रव, अम्ल, रस आदि का स्राव करना है / मणिपुर चक्र एक ऐसा सूक्ष्म केन्द्र है जो * इन कार्यों पर नियंत्रण रखता है। साथ ही वृक्कों के ऊपर स्थित उपवृक्क ग्रन्थियाँ भी मणिपुर चक्र की स्थूल रचनायें हैं। इन ग्रंथियों से उपवृक्कीय रस का स्राव होता है। विशेष परिस्थितियों में इन ग्रन्थियों द्वारा यह रस रक्तसंस्थान में भेजा जाता है। इससे समस्त शारीरिक प्रक्रियायें तीव्र हो जाती हैं और मस्तिष्क चैतन्य एवं तेज होता है / इसके अलावा हृदय - गति में वृद्धि हो . जाती है, श्वास क्रिया की गति बढ़ जाती है व नेत्र अधिक खुल जाते हैं। 351
SR No.004406
Book TitleAasan Pranayam Mudra Bandh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyanand Sarasvati
PublisherBihar Yog Vidyalay
Publication Year2004
Total Pages440
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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