________________ ‘लाभ पेट की वायु तथा अम्लीयता को रोकता एवं उपचार करता है। अन्न - नलिका में एकत्रित बलगम को निकालता है / इस तरह कास रोग तथा श्वसन के अन्य दोषों को दूर करता है / जठर की दीवारों में स्नायु - संकुचन के माध्यम से समस्त अंगों को प्रेरित एवं सुव्यवस्थित करता है | (ब) व्याघ्र क्रिया टिप्पणी यह कुंजल क्रिया की तरह ही है परन्तु इसका अभ्यास भरे हुए पेट में किया जाता है / बाघ की यह विशेषता है कि वह शिकार से पेट को बहुत अधिक भर लेता है, फिर तीन - चार घंटे उपरांत अपूर्ण रूप से पचे हुए भोजन को वमन द्वारा बाहर निकाल देता है। अपचा पदार्थ मानव शरीर से भी न चाहते हुए वमन द्वारा बाहर आ जाता है। ऊपर की क्रिया इसी भाँति है / अन्तर मात्र यही है कि इसमें इच्छानुसार वमन क्रिया सम्पादित होती है। यदि हम अशुद्ध भोजन ग्रहण करें या पाचन शक्ति ठीक नहीं है तो स्वाभाविक रूप से वमन हो जाता है। व्याघ्र की वमन क्रिया ठीक ऐसी ही है। दुर्बुद्धि से हम अशुद्ध या अधिक मात्रा में भोजन कर लेते हैं। शरीर इसे अधिक से अधिक पचाने का प्रयास करता है। ऐसी स्थिति में पेट में भारीपन आ जाता है और व्यक्ति को कुछ घण्टों तक असुविधा का अनुभव होता है / इस कष्ट को रोकने एवं निवारण के लिए सरलतम विधि यही है कि अन्न को मुँह द्वारा पेट से बाहर निकाल दिया जाये। . विधि . पेट में किसी प्रकार के भारीपन या तकलीफ होने पर यह क्रिया ठीक कुंजल क्रिया की भाँति ही कीजिये / जठर के सब अन्न का निकास हो जायेगा | भोजन के बाद 3 से 6 घंटे के अन्दर यह क्रिया कीजिये / क्रमागत नियम के अनुसार इसके बाद चावल की खीर खाई जाती है परन्तु यह अनिवार्य नहीं है। सावधानी नासिका - प्रदेश में अन्न - कण का प्रवेश न होने पाये / यदि यह स्थिति उत्पन्न होती है तो जल नेति का अभ्यास कीजिये / 343