________________ 5. लाघव- प्राणायाम द्वारा शरीर को हल्का बनाना / 6. धारणा - एकाग्रता एवं ध्यान द्वारा ध्येय वस्तु का साक्षात्कार / 7. समाधि - इन्द्रियगत अनुभवों से अनासक्ति या विकर्षण | इस प्रकार स्थूल शरीर का शुद्धिकरण इस दिव्य मार्ग की प्राथमिक आवश्यकता है / शरीरगत् विषाक्त तत्व या अशुद्धियों को दूर किये बिना उच्च योगाभ्यास बहुत कठिन है / इस मूल उद्देश्य की पूर्ति हेतु प्राचीन योगियों द्वारा 6 वैज्ञानिक व यौगिक प्रक्रियाओं का विकास किया गया है। इन्हें 'षटकर्म' कहते हैं। इन्हीं 6 क्रियाओं से हठयोग नामक योग की शाखा- विशेष का निर्माण होता है। षट्कर्म निम्न हैं - 1. नेति- नासिका - प्रदेश के शुद्धिकरण की विधि है। - 2. धौति - * मुँह से गुदाद्वार तक की संपूर्ण अन्न - नलिका के शुद्धिकरण की प्रक्रियाओं की शृंखला है / इसमें नेत्र, कर्ण, दाँत,जिह्वा,खोपड़ी की सरल सफाई की विधियाँ भी सम्मि लित हैं। 3. नौलि - . -- उदरस्थ अंगों की मालिश तथा उन्हें बल प्रदान करने की शक्तिशाली विधि है। . 4. बस्ति - बस्ति बड़ी आँत की सफाई करने एवं उसमें सुचारुता लाने _ के लिए है। 5. कपालभाति - मस्तिष्क के अग्र प्रदेश की शुद्धता के लिए तीन क्रियाओं की सरल श्रृंखला है। 6. त्राटक - किसी वस्तु पर गहन एकाग्रता की क्रिया है। इससे एकाग्रता में वृद्धि होती है तथा प्रत्येक व्यक्ति में निहित सुषुप्त उन आत्मिक शक्तियों का विकास होता है जिनके प्रति हम अचेत रहते हैं। नेत्रों को शक्ति प्रदान करता है। इस क्रिया का विस्तृत विवरण दिया जा चुका है। 20. 329